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________________ परिशिष्ट- 9 महावीर के साधना-प्रयोग महावीर ने दीक्षित होकर पहला प्रवास कर्मारग्राम में किया । ध्यान का पहला चरण - विन्यास वहीं हुआ । वह कैवल्य - प्राप्ति तक स्पष्ट होता चला गया । कुछ साधक ध्यान के विषय में निश्चित आसनों का आग्रह रखते थे । महावीर इस विषय में आग्रहमुक्त थे । वे शरीर को सीधा और आगे की ओर कुछ झुका हुआ रखते थे । वे कभी बैठकर ध्यान करते और कभी खड़े होकर । वे अधिकतर खड़े होकर ध्यान किया करते थे । वे शिथिलीकरण को ध्यान के लिए अनिवार्य मानते थे, इसलिए वे खड़े हों या बैठे, कायोत्सर्ग की मुद्रा में ही रहते थे । वे श्वास की सूक्ष्म क्रिया के अतिरिक्त अन्य सभी (शारीरिक, वाचिक और मानसिक) क्रियाओं का विसर्जन किए रहते थे । कुछ साधक ध्यान के लिए निश्चित समय का आग्रह रखते थे । महावीर इस आग्रह से मुक्त थे । वे अधिकांश समय ध्यान में रहते थे । उन्हें न शास्त्रों का अध्ययन करना था, और न उपदेश । उन्हें करना था अनुभव या प्रत्यक्षबोध । वे दूसरों की गायें चराने वाले ग्वाले नहीं थे जो समूचे दिन उन्हें चराते रहें और दूध दुहने के समय उनके स्वामियों को सौप आएं। वे अपनी गाएं चराते और उनका दूध दुहते थे । T महावीर सालंबन और निरालंबन - दोनों प्रकार का ध्यान करते थे । वे मन को एकाग्र करने के लिए दीवार का आलंबन लेते थे । वे प्रहर-प्रहर तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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