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कायोत्सर्ग : अभ्यास-क्रम
___ कायोत्सर्ग (शरीर-विसर्जन) की पहली प्रक्रिया शिथिलीकरण है । यदि आप बैठे-बैठे कायोत्सर्ग करना चाहते हैं तो सुखासन में बैठ जाइए-पालथी बांधकर या अर्द्धपद्मासन या पद्मासन लगाइए । फिर रीढ़ की हड्डी और गर्दन को सीधा कीजिए । यह ध्यान रहे कि उनमें न झुकाव हो और न तनाव हो । शिथिल भी रहें और सीधे सरल भी । अब दीर्घश्वास लीजिए | श्वास को उतना लम्बाइए जितना बिना किसी कष्ट के लम्बा सकें । इससे शरीर
और मन-दोनों के शिथिलीकरण में बड़ा सहारा मिलेगा | आठ-दस बार दीर्घश्वास लेने के बाद वह क्रम सहज हो जाएगा । फिर शिथिलीकरण में मन को लगाइए । स्थिर बैठने से कुछ-कुछ शिथिलीकरण तो अपने आप हो जाता है । अब विचारधारा द्वारा प्रत्येक अवयव को शिथिल कीजिए । मन को उसी अवयव में टिकाइए, जिसे आप शिथिल कर रहे हैं | अवयवों को शिथिल करने का क्रम यह रखिए-गर्दन, कंधा, छाती, पेट-दाएं-बाएं, पृष्ठभाग, भुजा, हाथ, हथेली, उंगली, कटि, टांग, पैर और अंगुलि । अब मांसपेशियों को शिथिल कीजिए । इस प्रकार अवयवों और मांसपेशियों के शिथिलन के बाद स्थूल शरीर से संबंध-विच्छेद और सूक्ष्म शरीर से दृढ संबंधस्थापन का ध्यान कीजिए।
सूक्ष्म शरीर दो हैं-तैजस और कार्मण ।
तैजस शरीर विद्युत का शरीर है । उसके साथ संबंध स्थापित कर प्रकाश का अनुभव कीजिए । शक्ति और दीप्ति का यह प्रबल माध्यम है ।
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