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९. चाणक्य और चन्द्रगुप्त व्यवहार में चाणक्य नीति प्रसिद्ध है। इस नीति के विधायक चाणक्य से बहुत लोग अवगत हैं तो कुछ अनजान भी है। इसी कारण जन्म से लेकर चाणक्य के जीवन को स्पर्श करता हुआ चित्रण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।
गौड़ देश में चणक नामक एक गाँव था। चाणक्य के पिता का नाम चणक और माता का नाम चणेश्वरी था। जन्म के समय चाणक्य के मुँह में दाँत थे। उनके पिता जाति से ब्राह्मण थे और जैन धर्म को मानते थे।
एक दिन भिक्षा के लिए घर मे पधारे मुनिओं को उन्होंने दांत सहित जन्मे बालक विषय में बताया। मुनियों ने कहा-यह बालक भविष्य में राजा होगा।
पिता चणक पुत्र की केवल दैहिक देखभाल ही नहीं करते थे, वरन् वे वास्तविक अर्थ में धर्म-पिता थे। बालक सांसारिक सत्ता या सम्पत्ति से समृद्ध हो, ऐसी उनकी अभिलाषा न थी। क्योंकि सत्ता की साठमारी (भूख) से परलोक में होने वाली दुर्गति से वे भली प्रकार अवगत थे।
राजा बनकर कहीं मेरे पुत्र की दुर्गति न हो जाये-यह सोचकर आरी से उन्होने बालक के दाँत घिस दिये। मुनियों से फिर से बालक के विषय में पूछा गया। मुनियों ने कहा-"गुणालंकृत ये बालक अब राजा नहीं बनेगा किन्तु किसी राजा का शासन-प्रबन्ध देखेगा अर्थात् किसी राजा की छाया बनकर रहेगा। __ पिता ने बालक का नाम चाणक्य रखा। दज के चाँद के समान आयु में, विद्याओं में, कलाओं में एवं गुणों में वृद्धि प्राप्त करते हुए उसने यौवन में कदम रखा। एक कुलीन ब्राह्मण कन्या से उसका विवाह हुआ।
चाणक्य अपने जीवन से संतुष्ट था इसलिए निर्धन होने के बावजूद भी धन प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयत्न नहीं करता था।
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