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________________ ८. दिगम्बर मत के आद्य प्रणेता इक्कीस हजार वर्ष तक निरन्तर चलने वाले जिन-शासन को काला धब्बा लगानेवाली इस कलंक-कथा को उत्तराध्ययनसूत्र की टीका में महोपाध्याय श्री भावविजय जी महाराज ने अपने शब्दों में इसप्रकार व्यक्त किया है श्री वीर निर्वाण के ६०९ वर्ष पश्चात् घटित यह एक सत्य घटना है। रथवीरपुर नगर के राजा के समक्ष शिवभूति नामक सहस्र योद्धा (जो युद्ध में अकेले हाथ एक हजार योद्धाओं से लड़ सकें।) सेवा के लिये उपस्थित हुआ। राजा ने उसकी परीक्षा लेने का निश्चय किया। कृष्णपक्ष की चर्तुदशी (दीपावली से एक दिन पहले) राजा ने उसे बुलाकर कहा कि आज रात श्मशान में तुम्हें श्मशान-देवी को एक पशु की बलि देनी है। यह कहकर राजा ने उसे एक पशु और मदिरा से भरा एक घड़ा दिया। धीर-वीर शिवभूति भी अकेले ही उस रात एक बकरे का वध करके श्मशान-देवी के मंदिर में बलि चढ़ाने गया। भूख से व्याकुल शिवभूति ने बलि चढ़ाकर निर्भयता से वही मांस का भोजन किया। राजा ने उसे भयभीत करने के लिए गुप्त रूप से अपने आदमी भेजे थे। जो कि वहाँ आसपास छिपकर लोमड़ी और भैरव की भयंकर आवाजे निकालने लगे। फिर भी शिवभूति को भय, स्पर्श तक न कर सका। राज-पुरुषों ने राजा के पास जाकर सारी हकीकत बतायी। शिवभूति की वीरता से प्रसन्न होकर राजा ने उसे अच्छी तनख्वाह पर नौकरी दे दी। शिवभूति भी हमेशा राजा की सेवा में उपस्थित रहने लगा। एक बार राजा ने सेनापति आदि सैन्य को मथरा जीतने का आदेश दिया। सैन्य के साथ सेनापति ने मथुरा नगरी की ओर प्रयाण किया। परन्तु रथवीरपुर नगर से बाहर निकलने के बाद वे लोग परस्पर OM MOMONOVO KOYOOT ★२२★ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002740
Book TitleAnant Akash me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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