SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६. कृष्ण का क्रोध-विजय अचानक अनियन्त्रित घोड़ों ने दारुक, सत्यक, बलराम और कृष्ण इन चारों मित्रों को दूर-सुदूर जंगल (वन) में पहुँचा दिया। अंधेरा होने लगा था। प्रत्येक मित्र एक-एक प्रहर तक अन्य तीनों की रक्षा करेगा-इस प्रकार का निर्णय लेने के बाद सर्वप्रथम दारुक को रक्षक नियुक्त किया गया। अन्य तीन मित्र बरगद के नीचे गहरी नींद सो गये। थोडी देर बाद वहाँ एक पिशाच आया जिसकी लाल-लाल आँखों डरावनी प्रतीत होती थी। बाल भी भयंकर लग रहे थे। दारुक के पास आकर इस भयंकर पिशाच ने कहा-"मैं बहत भूखा हैं। तम सबको खाने आया हैं।" दारुक ने कहा-"इन लोगो की रक्षा के लिए मुझे नियुक्त किया गया है। अतः इनको खाने से पहले तुम्हें मेरे साथ युद्ध करना होगा।" दोनों में युद्ध आरम्भ हो गया। पिशाच की तुलना में दारुक निर्बल था। ज्यों-ज्यों दारुक पीछे हटता गया, त्यों-त्यो पिशाच उसे चिढ़ाता रहा। अतः दारुक दुगुने क्रोध से पिशाच के समक्ष उच्च स्वर में चिल्लाने लगा। वह पिशाच को गालियाँ देने लगा। इस प्रकार दारुक का क्रोध बढ़ने लगा दारुक का क्रोध बढ़ने के साथ ही पिशाच अपने शरीर की उंचाई बढ़ाने लगा। और प्रथम प्रहर के समाप्त होने तक तो उसका शरीर ताड़-सा हो गया। पिशाच से परास्त होकर निर्बल दारुक ने प्रथम प्रहर जैसे-तैसे बिताया। दूसरे प्रहर में सत्यक को जगाकर दारुक सो गया। पिशाच ने उसको भी उसी प्रकार परास्त किया। जैसे-तैसे सत्यक ने द्वितीय प्रहर व्यतीत किया और बलराम को जगाकर स्वयं सो गया। तीसरे प्रहर के रक्षक बलराम को भी शक्तिशाली पिशाच ने निर्बल बना दिया। उसे हैरान-परेशान कर दिया। उस प्रकार तीनों मित्रों की हालत एक-सी हो गई। अब कृष्ण की बारी थी। बलराम, कृष्ण को जगाकर स्वयं सो गया। पिशाच ने कृष्ण से भी कहा-“मैं भूखा हूँ। तुम्हारे तीनों सोये हुए मित्रों को ‘स्वाहा' करना चाहता हूँ" तब कृष्ण ने कहा-“इन मित्रों की रक्षा करना मेरा कर्त्तव्य है। अतः मुझे परास्त किये बिना तुम इनको स्पर्श तक नहीं कर सकते।" ____ अन्त में दोनों के बीच युद्ध शुरू हो गया, भुजाओं को टकराते हुए और पृथ्वी को कँपाते हुए दोनों में भयंकर युद्ध होने लगा। लेकिन कृष्ण की युद्ध नीति अनोखी थी। ज्यों-ज्यों पिशाच युद्ध के रंग में आने लगा, कृष्ण उसकी प्रशंसा करने लगे"ओह ! कितना तेज पिशाच है ! और कितनी निराली युद्ध कला ! शाबाश !!! इस प्रकार कृष्ण ज्यों-ज्यो Jain Education International +१७+ For Private ? Yersonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002740
Book TitleAnant Akash me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy