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________________ वाल ५. महिमा : कृष्ण नरसिंह की तुंगिका पर्वत के शिखर पर बलदेवमुनि मासक्षमणादि करके उग्र तपस्या करने लगे। वन में लकडी काटने आने कुछ भी भोजन मिलता उसे भिक्षा में पाकर पारणा करते और स्व-साधना में लीन हो जाते। शनै-शनै उग्र तपस्या करते हुए पर्वत के आसपास स्थित राज्यों में बलराम मुनि की प्रसिद्धि बढ़ने लगी। "कोई महान तेजस्वी मुनि पर्वत पर उग्र तपस्या कर रहे हैं।"-लकड़हारों के मुख से यह सुनकर उन राज्यों के राजा सोचने लगे, हमारे राज्यों को हडपने के लिए कोई मनुष्य उग्र एवं उत्तम मन्त्र-साधना कर रहा है। इसलिए हम आज ही वहाँ जाकर उसे मार देंगें ताकि ऐसा कोई भय हमें न रहे।" इसप्रकार सलाह करके सारे राजा एकत्रित होकर अपनी-अपनी सेना के साथ पर्वत पर आ पहुँचे। भक्ति भाव से प्रेरित होकर बलराम मुनि की सेवा में रहने वाले सिद्धार्थ देव ने भयंकर सिहों को उनकी तरफ छोड़ दिया। पूरा वातावरण सिंहनादों से भयंकर हो उठा। उन सिंहों को देखकर डरे हुए राजा बलराम मुनि को प्रणाम करके अपना अपराध स्वीकार करते हुए वापस चले गये। तब से बलराम मुनि 'नरसिंह' नाम से प्रसिद्ध हुए। करुणानिधी बलराम मुनि की अति उग्र तपस्या ने जंगली जानवरों को बहुत अधिक प्रभावित किया। उनकी साधक देह से प्रभावित शांत-प्रशांत परमाणुओं ने सिंह-बाघ आदि अनेक क्रर पशओं का स्वभाव शान्त बना दिया। उनकी देशना के प्रभाव से अनेक प्राणी पापभीरू श्रावक बन गये। अनेक ढीठ प्राणी सरल स्वभाव के बन गये। अनेक पशुओं ने मांस-भक्षण त्याग दिया एवं अनेकों ने अनशन व्रत स्वीकार कर लिया। इसप्रकार बलराम मुनि की सूक्ष्म साधना से जंगल में मंगल हो गया। साधना और देशना से भावुक बने वन्य जीव उनकी सेवा में तत्पर रहने लगे। स्वआचारों में सुस्थित मुनि वन में रहते हुए अपने-परायों का भी कल्याण करते हैं। यह दृष्टान्त इस बात का साक्षी है। Monitor ★१५* For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002740
Book TitleAnant Akash me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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