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________________ पं नामी चोरकी गुफामें.... चगिरिमेंसे एक मात्र मुख्य वैभारगिरिकी यात्रा • और स्पर्शना बाकी थी। नजदीक के भूतकालमें जहाँ प्रभु वीरके अनेक बार समवसरण रचे हुए थे । मित्रबेलड़ी वह वैभारगिरिकी तलेटीपर पहुँचे, प्राकृतिक सौंदर्यने उनके तन-मनको प्रफुल्लित कर दिया। परंतु वे तो आंतरसौंदर्यको चमकानेवाले समाधि स्थलोंको स्पर्श करना चाहते थे । चढ़ाण शुरू हुआ... वनराजीको पसार करते करते वे एक छोटी टेकरी पर पहुँच गये... Education यहाँसे वानर-बच्चें वृक्षोंकी (शाखा) वडवाईको पकड़कर 55 झूलते थे। कहीं जंगली पशु आवाज कर रहे थे। कहीं भालू डणक कर रहे थे। राजूने अंगुली से बताया। देख संजू ! यह छोटीबड़ी गुफाएँ... सामान्य मनुष्य तो वहाँ पहुँच ही न सके ऐसी भयावह इन गुफाओंमें ही कहीं राजधानीका नामी (प्रख्यात) चोर रहता था। इकठ्ठा किया हुआ धन और माल वह यहां छुपाता था। नाम उसका लोहखुर। वह जब मरने पड़ा तब अपने पुत्र रोहिणेयको प्रतिज्ञा कराई कि कभी भी महावीरकी देशना नहीं सुनना... क्योंकि उसको पक्का
SR No.002739
Book TitleEk Safar Rajdhani ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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