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________________ धन्य श्रेष्ठिके अपने मालिकीके मासक्षमणके तपस्वी महात्मा वहाँ भिक्षा हेतु पधारें...इस गरीब लड़केने तो मेहनतसेइकट्ठी की हुई... जिंदगीमें प्रथमवार खाने के लिए मिली खीर ऊँचे अहोभावपूर्वक तपस्वी मुनिराजके पात्रमें वोहरा दी। वोहराने के बाद भी खूब अनुमोदना की जिससे ऐसा जबरदस्त पुण्य बाँध लिया कि वह गोभद्रसेठका लाडला लाल शालिभद्र बना। दिव्य समद्धि का भोक्ता बना। * गोरी! तुझे इतना कौनसा दु:ख...? * १५०० गाँव थे... * ६६०० क्रोड़ सोने की मोहरें थीं... * ५०० जहाज थे.... * ५०० अश्वथे... * ५०० गृहमंदिर थे... * १००० वाणोतर थे... * आठ पत्नीके आठ गोकुल... * सात-सात मंजिलके आठ महल... * आठ पत्नीयोंके सोने की मोहरोंसे भरे भंडार. * चिंतामणि रत्न और दूसरे असंख्य उत्तम जाति रत्नथे... संजू ! शालिभद्की सुभद्रा नामक एक बहनकी धन्यश्रेष्ठिके साथ शादी हईथी। मगधधन्ना-शालिभद्रकी (साले-बहनोईकी) जोडी प्रख्यात थी। राजधानीमें दोनों मूर्धन्य कक्षाके श्रेष्ठिवर्य थे। ऐसे ऐश्वर्यवान थेधन्य श्रेष्ठि... संजू ! इस धन्नाशेठनें भी शालिभद्रकी तरह ही पूर्व जन्ममें गरीब माताने दूध, चावल, शक्कर आदि पड़ोसीके पाससे याचना कर खीर बनाके खीर खाने के लिए पुत्र को दी. पुत्र ने वह सब तपस्वी मुनिराजको वोहरा दी, और उसी पुण्यकर्मसे इस भवमें अनर्गल रिद्धि-सिद्धि पाइथी। संजू तो सुनता ही रहा... एक समयकी बात है! सुन... 52 Dration-international Pale Personal use only
SR No.002739
Book TitleEk Safar Rajdhani ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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