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________________ तो भी वह अत्यंत शीतलताका अनुभव कर रहा था। हर्षाश्रुसे भरी इसकी आँखें छलक रही थी। 10.10394 राजू ! प्रभुने चौदह चातुर्मास ये एक ही महोल्ले में किये थे, इससे इतना ख्याल तो जरूर आता है कि प्रभुने यहाँ बहुत ही लाभ (धर्म बाबत का मुनाफा) दिखे होंगे। राजू एक स्थानपर आते ही रूक गया। संजूको उद्देशकर वह बोला... संजू ! राजधानीके परम-पवित्र स्थलपर हम आ पहुँचे। हाँसंजू। यह राजगृह नगरके जंबू, शालिभद्र और धन्ना जैसे अनेक कोट्याधिपति अपनी दोम दोम साहिबी को छोड़कर भरे यौवन-वयमें प्रभुके शिष्य बने है। चारित्र अंगीकार करके स्व-पर उपकारों की झड़ियाँ (वर्षा) बरसाते आत्मकल्याणको सिद्ध किया है तो प्रभव और रोहिणेय जैसे नामी चोर भी प्रभु-शासनको पाकर सद्गति को प्राप्त हुए है। प्रभुवीरके पादारविंदोसे परमपुनित बनी यह पुण्यभूमिकी हर रज (कण) नमस्करणीय बनी है। करूणानिधान महावीर परमात्माके इसी स्थल पर १४ (चौदह) चातुर्मास हुए हैं। संजू तो ऐसी धन्यतम नगरीमें अपना जन्म हुआ जानकर स्व को कृतकृत्य (सद्भागी) मानने लगा। संजू.. ! सैंकड़ोबार प्रभुमहावीरके समवसरण की यहाँ रचना हुई होगी। संजू ! जब – जब प्रभु महावीर राजगृहीमें पधारते तब - तब राजा श्रेणिक बड़े आडंबर युक्त, नगरजन, राजपरिवार और अंत:पुर सह प्रभुका भव्य स्वागत करता था। और समवसरणमें खुद देवेन्द्रों और नागेन्द्रोंने भी प्रभुको चामर ढोते सेवक बनकर पूजा की होगी। देवांगनाएँ प्रभु आगे नृत्य करके अपनी भक्ति प्रदर्शित करती होंगी। और एक बार तो राजा कोणिकने शानदार-अभूतपूर्व ऐसा जुलुस निकाला कि अभी भी जनता इस जुलुसको याद करती और प्रशंसाके पुष्प बिछाते नहीं थकती। अशोकवृक्षकी शीतल छाया संतप्त-हृदयों को शांतप्रशांत बनाती होगी। अरे संजू ! राजधानीकी इस धर्मधराको स्पर्श करने हेतु सुरेन्द्रों और असुरेन्द्रोंको भी दौड़कर आना पड़ा है। मालकौंश रागमें मीठी-मधुरी प्रभुकी वाणीने अनेकोंके अज्ञान-अंधकार दूर किये होंगे। सैंकड़ो बार प्रभुने यह पुण्यभूमि पर पदार्पण करके राजधानीको चार चाँद लगाया है। संजू.. ! मगध-नरेश भी विनम्र भावसे अपनी शंकाओंको प्रगट करते होंगे.. प्रभु इनका समाधान करते होंगे..। इस सवाल-जवाबोंकी कैसी रमझट जमी होगी...। र राज दोनो अत्यंत भावविभोर-गदगद बन गये । वो नालंदा-पाड़ेकी धरतीको अपने मस्तकसे घिसने लगे। मगध-नरेश श्री महावीरके पास मानरहित-मच्छर जैसा बन जाता होगा..। कैसा होगा यह अदभुत-अकल्पनीय दृश्य...! घुटणोंसे गिरकर वह धरतीके कणकणमें से निकलते पवित्र परमाणुओंको झेलने लगे। और यह पवित्र रजकणोंसे ललाट पर तिलक किया। संजू बोला... यह पवित्र धर्मधराको पुन: पुन: प्रणाम करते दोनों वहाँसे आगे की नगरयात्राके लिए चल पड़े..। 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002739
Book TitleEk Safar Rajdhani ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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