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नमस्कारेण अपन्या अपम्यजविका इवमान्याता। रणवैकलुबा विक्षया मध्यमभ्यमित्र ।। १६७ ॥ संपना उकोसा, उकोसकोसिवासा सिद्धा। उबलक्स खुवं, दोन दोन सजाईए ॥१८॥ संपूर्णा उत्कटा उत्कटोकटिकन मिच।
अपम्प सवेवायोईयोः समालो.१६८॥ बोर्षति
पमिवावदरी, एनबहपदमा नेवा।
बहुमतिगेजमशा, उपोसा पउहि पहिया॥१६॥ बन्ने मपन्धिअविपणन एसेन अपन्नकलना शेगा। वारिकवि मन्या उत्कय पतुर्मि: पचमिर्वा ॥१६९।। इत्यसबाबो मनो, इरिमावहिसाबमावजो दुधि। एवं उपोसाए, चउरो चलदेवरा ॥ १७० ॥ इसमतामये वापविमाक्यो । एवं सयां त्वारः पचवावयाः ॥ १० ॥ मनिउन नावारे, सकवपदंडयं पडिऊन। हरिवं पटिकामते, दोघउरो वा वि पणिवाया॥१७॥ मणिला नमस्कारान् सन्सबदण्ड पठित्वा । नै प्रतिकाम्या डी पवारो वापि प्रणिपाताः ॥१७॥ एवं पि जुचिजुर, आइ जेन दीसए बहुसो। नवरं नवमेपानं, ने उपलक्स पि ॥ १७२ ॥ एतदपि मुजिबुर आची वेन एव बामः। नवरं मामेदान से उपपदापि ॥ १२॥
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