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________________ प्राचीन जैन साहित्य प्राकृत भाषा में निबद्ध है। संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी और सभी प्रादेशिक भाषाओं में अत्यधिक जैन साहित्य लिखा गया। परिमाण और गुणवत्ता दोनों दृष्टियों से उसे अपर्याप्त और असंतोषजनक नहीं कहा जा सकता, तथापि मध्यकाल में इसे धार्मिक साहित्य कहकर इसकी उपेक्षा हुई। उन्नीसवीं और बीसवीं शती में प्राच्य और पाश्चात्य विद्वानों का ध्यान इस ओर गया, फलतः अनेक ग्रन्थों के सुसंपादित और अनूदित संस्करण निकले। तुलनात्मक और विश्लेषणात्मक दृष्टि से अनेक शोध-परक प्रबन्ध भी विभिन्न उपाधियों के लिए लिखे गये। इनकी प्रामाणिक और विस्तृत सूची की आवश्यकता थी । प्रस्तुत पुस्तक शोध - संदर्भ का संशोधित और परिवर्धित तीसरा संस्करण है। इसमें भारतीय विश्वविद्यालयों में हुए लगभग 1100 तथा विदेशी विश्वविद्यालयों मे हुए 131 शोध-प्रबन्धों का परिचय दिया गया है, साथ ही शोधयोग्य विषयों, विश्वविद्यालयों, प्रकाशकों आदि की सूची दी गई है। लगभग 200 प्रबन्धों के विस्तृत परिचय में उनके प्रकाशक, मूल्य, पृष्ठ तथा अध्यायों के नाम दिये गये हैं। पुस्तक इस शैली में तैयार की गई है, जिससे हिन्दी व अंग्रेजी दोनों के पाठक लाभ उठा सकें। लेखक सभी प्रबन्धों के संकलन का प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं। सभी मंदिरों, पुस्तकालयों तथा व्यक्तिगत संकलनकर्ताओं के लिए आवश्यक और उपयोगी पुस्तक । प्राप्ति स्थान 1. डा. कपूरचंद जैन सचिव- श्री कैलाश चन्द जैन स्मृति न्यास श्री कुन्दकुन्द जैन महाविद्यालय परिसर खतौली - 251201 (उ.प्र.) भारत दूरभाष : 01396-273339 2. मोतीलाल बनारसी दास 41 यू. ए., बेंग्लो रोड़, जवाहर नगर,, दिल्ली-110007 ( भारत ) दूरभाष : 011-23858335, 23851985 3. डा. नन्दलाल जैन जैन सेन्टर, रीवा - 486001 मूल्य : रुपये 200/ डॉलर 5/ Jain Education internationell पृष्ठ अंग 34 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002731
Book TitlePrakrit evam Jainvidya Shodh Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherKailashchandra Jain Smruti Nyas
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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