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Bibliography of Prakrit and Jaina Research
प्रथम : 1989/60.00/44 + 230 अ०- (1) अनेकान्तिक दृष्टि का विकास, (2) स्याद्वाद एक सापेक्षिक दृष्टि, (3) ज्ञान एवं वचन की प्रामाणिकता, (4) जैन न्याय में सप्तभंगी, (5) समकालीन तर्कशास्त्र के सन्दर्भ में सप्तभंगी, (6) उपसंहार।
628. यादव, ललिता देवी
भारतीय दर्शन में नास्तिकता : चार्वाक, बौद्ध, जैन तथा मीमांसा दर्शन के विशेष सम्बन्ध में पटना, 1979, अप्रकाशित
629. रज्जन कुमार
जैनधर्म में समाधिमरण की धारणा वाराणसी, 1988, अप्रकाशित नि०- डा० सागरमल जैन, वाराणसी
630. Rajesh Kumar
A Critical Study of Tattawarthsutra of Umaswami and Teekas on it.
Punjab, 1989, Unpublished. 631. रांवका, कमल किशोर
(लघु प्रबन्ध) आचार्य कुन्दकुन्द साहित्य एवं अर्थमागधी साहित्य में जीव और अजीव उदयपुर, 1989, अप्रकाशित
नि०- डा० प्रेमसुमन जैन, उदयपुर 632. राय, रामनरेश
आ० कुन्द कुन्द और उनका नियमसार बिहार, 1993, अप्रकाशित नि०- डा० लालचंद जैन
633. Raynade, B.B.
A Critical and Comparative study of the Jaina conception of Moksha Varanasi, 1959, Unpublished.
634. लोढ़ा, कंचन
जैन दर्शन में स्याद्वाद : एक समालोचनात्मक अध्ययन (जैनमत में स्याद्वाद्व का तार्किक अध्ययन) जोधपुर, 1979, अप्रकाशित नि०- डा० प्रेम मिश्रा, दर्शन विभाग, जोधपुर विश्वविद्यालय, जोधपुर (राज०)
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