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________________ प्राकृत एवं जैनविद्या : शोध-सन्दर्भ 111 532. भट्टाचार्या, मंजुला (श्रीमती) जैन धर्म में ईश्वरवाद की समालोचना वाराणसी, 1992, अप्रकाशित नि०- डा० सागरमल जैन 533. आन्ने, एस० वी० महावीर दर्शन का आलोचनात्मक अध्ययन पूना, 1983, अप्रकाशित 534. Upadhyay, Shanti Lal Chhagan Lal Jain iconography Mainly is Shvetambara. Mumbai, 1949, Published. 535. Okai (Japan) Studies Prajnakar Gupta's' Commentary on Pramanavartika Gujrat (L.D. Institute), 1978,............ Sup.-Pt. D.D. Malvania 536. कोठिया, दरबारी लाल (स्व०) जैन तर्कशास्त्र में अनुमान विचार वाराणसी, 1968, प्रकाशित नि०- डा० नन्दकिशोर देवराज, वाराणसी 'जैन तर्कशास्त्र में अनुमान विचार : ऐतिहासिक एवं समीक्षात्मक अध्ययन' नाम से प्रकाशित प्रका०- वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट प्रकाशन, वाराणसी प्रथम : 1969/16.00/16 + 298 अ०-.1/1 भारतीय वाङ्मय और अनुमान 1/2 जैन परम्परा में अनुमान-विकास 1/3 संक्षिप्त अनुमान विवेचन 2/1 जैन प्रमाणवाद और उसमें अनुमान का स्थान 2/2 अनुमान समीक्षा 3/1 अनुमान भेद विमर्श 3/2 व्याप्ति विमर्श 4/1 अवयव विमर्श 4/2 हेतु विमर्श 5/1 जैन परम्परा में अनुमानाभास विमर्श 5/2 इतर परम्पराओं में अनुमानाभास विमर्श, उपसंहार । 537. गांग, सुषमा (सिंघवी) आचार्य कुन्द कुन्द के प्रमुख ग्रन्थों में दार्शनिक दृष्टि दिल्ली, 1978, प्रकाशित प्रका०- भारतीय विद्या प्रकाशन, दिल्ली प्रथम : 1982/60.00/16 + 230 अ०- (1) प्रस्तावना (2) पञ्चास्तिकाय में कुन्दकुन्दाचार्य की दार्शनिक दृष्टि (3) प्रवचनसार में कुन्दकुन्दाचार्य की दार्शनिक दृष्टि, (4) सयमसार में कुन्दकुन्दाचार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002731
Book TitlePrakrit evam Jainvidya Shodh Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherKailashchandra Jain Smruti Nyas
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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