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________________ -४०. २. १९] महाकवि पुष्पदन्त विरचित दिणयरपईवए मेरुपुग्विल्लए तहिं विदेहे वैरे पविमलदियंतरे रायहंसुज्जलं फुल्लपंकयवणं णवकुसुमपरिमलं रुणुरुणियमहुयरं तुंगपायारयं विरइयमहुच्छवं रसियनृववारणं चिंधमालाउलं हेममयमंदिरं तहिं सुहडसाहणो वसइ सिरिसेविओ चारुरज्ज कए तिविहणिवेइणा थोरदीहरमुए सधरधरणी पया इह पढमदीवए। पसुकणधणिल्लए । सीयसरिउत्तरे। कच्छदेसंतरे। सच्छविच्छेलु जलं । पवणहल्लिरवणं। सरससुमहुरफलं । रइरमियणहयरं। गोउरदुवारयं । तुरयहिलिहिलिरवं । णीलदलतोरणं । विविहजणसंकुलं। खेमणामं पुरं। पहु विमलैंवाहणो। पणइणीणं पिओ। दीहकाले गए। तेण वरराइणा। विमलकित्तीसुए। विणिहियो संपया। २ __जिसमें सूर्यरूपी प्रदीप हैं ऐसे इस प्रथम द्वीप जम्बूद्वीपमें सुमेरुपर्वतके पूर्वमें पशु और धान्यसे सम्पन्न श्रेष्ठ विदेह क्षेत्रमें सीता नदीके उत्तर में प्रविमल दिशान्तरवाले कच्छ देशमें क्षेम नामका नगर है, जो राजहंसकी तरह उज्ज्वल और स्वच्छ उछलते हुए जलवाला है, जिसमें कमलवन खिला हुआ है, और जो पवनसे हिलनेके कारण सुन्दर है। नवकुसुमोंसे सुरभित, और सरस तथा सुमधुर फलवाला है। जिसमें मधुप गुंजन कर रहे हैं और नभचर रतिसे क्रीड़ा कर रहे हैं । जिसमें ऊँचे परकोटे हैं, जो गोपुर द्वारवाला है, जिसमें महोत्सव हो रहे हैं, अश्वोंके हिनहिनानेका शब्द हो रहा है। राजाके गज चिग्घाड़ रहे हैं, नीलपत्तोंके तोरण हैं, जो ध्वजचिह्नोंको मालाओंसे व्याप्त हैं, तरह-तरहके जनोंसे संकुल हैं और जिसमें स्वर्णनिर्मित प्रासाद हैं, ऐसे उसमें सुभटोंकी सेवासे युक्त विमलवाहन नामका राजा था। श्रीसे सेवित वह अपनी प्रणयिनियोंके लिए अत्यन्त प्रिय था। अपना सुन्दर राज्य करते हुए, उसका जब बहुत समय बीत गया, तो संसार, शरीर और कामसे विरक्त होकर उस उत्तम राजाने अपने स्थूल और लम्बी बाहुवाले विमलकीति नामक पुत्रके लिए पर्वत और धरती सहित समस्त सम्पदा सौंप दी। और असन्दिग्ध प्रभावाले स्वयंप्रभ जिनको २. १. P वसुकण । २. P विदेहे पुरे। ३. A विच्छुलजलं । ४. AP सरसमहरं फलं । ५. P तुरियं । ६. AP णिववारणं । ७. A विवलवाहणो। ८. A विवलकित्ती । ९. APT विणिया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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