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________________ - ३९. १२.९ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित ता णिग्गय तणय पसाउ भणिवि धरैधरणक्खम उधुद्धसोंड धाइय जुवाण मुहमुक्कराव घत्ता - पविदंडें खणरुइचंडे फाडिउ खणि खोणीयलु ॥ नरसारहिं रायकुमारहिं "देवहुं दाविउँ भुयबलु ॥११॥ १२ यिचिरपवाह पिहुहु मुयंति परिभमियवारिविब्भम भमंति परिमलमिलियालिहिं गुमुगुमंति सविसई विसिविवेरइं पइसरंति गिरिकंदर दरि सर सरि भरंति उत्तुंगतरंगहिं हि मिलंति कच्छवमच्छोह समुच्छलंति पविउलजलवलयहिं चलवलंति वलइयउ ताइ कइलासु केंव जेमदंडचंड भुयदंड धुणिवि । णं मयगल मयजलगिल्लगंड | णं पलयजलय गज्जणसहाव | करिकरडगलियमঈमलु घुयंति । कमलोयरमयरंदई वैमंति । वैणयवजालो लिहिं सिमिसिमंति । फणिफुकारिहिं दरोस रंति । दिसं हलु लु जलु जलु करंति । विर्यडयर सिलायल पक्ख ंति । हंसावलि कलरव कलयलंति । कड़िय गंगाणइ खेलख ंति । वेसाइ पमत्त भुयंगु जैव । Jain Education International 2 ३३ १० मार्ग (आना) नष्ट हो जाये ।" तब 'जैसी आज्ञा' - कहकर वे पुत्र यमदण्डके समान प्रचण्ड अपने भुजदण्ड ठोकते हुए निकल पड़े, जैसे वे पृथ्वी धारण मदसे आर्द्र गण्डस्थलवाले मदगज हों। अपने मुँहसे गर्जनस्वभाववाले प्रलयमेघ हों । करने में सक्षम, अपनी सूंड ऊपर किये हुए, शब्द करते हुए वे युवक ऐसे दौड़े, मानो ५ घत्ता - बिजलीकी तरह प्रचण्ड वज्रदण्ड से उन्होंने एक क्षण में पृथ्वीतलको विदीर्ण कर दिया, और इस प्रकार मनुष्यश्रेष्ठ उन राजकुमारोंने देवोंके लिए अपना बाहुबल दिखा दिया ॥ ११॥ १२ अपने चिर प्रवाह विशाल मार्गको छोड़ती हुई, हाथोके गण्डस्थलोंसे गलित मदजलको धोती हुई, घूमते जलोंसे विभ्रमको धारण करती हुई, कमलोदरोंसे मकरन्दका वमन करती हुई, सौरभसे मिले हुए भ्रमरोंके द्वारा गुनगुनाती हुई, वनोंको दावाग्नियोंकी ज्वालाओंसे सिमसिमाती हुई, सांपोंके विषैले बिलोंमें प्रवेश करती हुई, नागोंके फूत्कारोंसे थोड़ा फैलती हुई, पहाड़की गुफाओं, घाटियों, सरोवरों, नदियोंको भरती हुई, दिशाओं, आकाशतल, स्थल और जलको जलमय बनाती हुई, ऊँची तरंगोंसे आकाशसे मिलती हुई, विकट शिलातलोंका प्रक्षालन करती हुई, कछुओं और मत्स्योंके समूहों को उछालती हुई, हंसावलियोंका कलरव करती हुई, विशाल जलविलयों चिल-बल करती हुई, और खल-खल करती हुई गंगा नदी आकर्षित की गयी, उसके द्वारा कैलास पर्वत उसी प्रकार घेर दिया गया, जिस प्रकार वेश्याके द्वारा प्रमत्त लम्पट घेर लिया जाता है । For Private & Personal Use Only ५. जयदंड । ६. A वरघरणुक्खम उद्धायसोंड । ७. A जलमयगिल्लं । ८. A राय । ९. A सहाय । १०. A परियड्ढि गंगाजलु; P परियट्ठि गंगाजलु । . । १२. १. A चिरु पवाहपिहमहुँ । २. A मयजल चुवंति; P मयजलु घुयंति ५. A विसविवरइं । ६. A दिसि । ७. P जलु थलु । ९. P खलहलंति । ३. P मुयंति । Y.AP ८. A वियलयलसिलायल । ५ www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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