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________________ - ३९.२.१० ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित जहिं मंडव दक्खाहल व घरि घरि करिसैणियहं हल वहति । जहिं णिच्चु जिसु सुहिक्खु खेडं कामिणिउ देति कामुयहं खेडं । घत्ता - विम्हिर्यसुरु तहिं पुहईपुरु पविमलमणिमयमहियेल || सरयामलु चंदयरुज्जलु "घरचूलाहयणहयले ' ॥१॥ तहिं णिवसइ सिरिजयसेणु राउ रइसेणु पुत्तु पररमणिअवरु ते विणि वि जण पश्ञ्चक्खकाम ते बिणि वि जण ससिसूरधाम. बिण वि जण पर हियविवेये गुरुदेव मित्तबंध व विणीउ करपल्लवग्गताडियउराई पण मुति ण धैरु दुवारु २ जिणसेणापणइणिजणियराउ । उप्पण्णु ताहं दिहिसेणु अवरु । ते बिणि वि जण संपेण्णकाम | ते बिणि वि जण जयलच्छिधाम । ते बिणि वि जण जणणहु विज्ञेय । रइसेणु णवर काळेण णीउ । पडियइं पियर इं सोयाउराई । सिमोहणी मुणिहिं वि दुवारु । घत्ता - विडंतह बिहिं वि रडंतहूं उवसम भाउप्पाणु ॥ कय संतिहिं दिण्डं मंतिहिं जिणवरवर्येणु रसायणु ॥२॥ २५ Jain Education International १० १० गोल हैं । जहाँ मण्डप द्राक्षाफलों ( अंगूरों ) को धारण करते हैं, जहां घर-घर में किसानोंके हल चलते हैं । जहाँ क्षेत्र नित्य सुन्दर और सुभक्ष्य रहते हैं, जहाँ कामिनियां कामुकों को आलिंगन देती हैं । ५ घत्ता - उसमें देवों को विस्मित करनेवाला और स्वच्छ मणिमय महीतलवाला पृथ्वीपुर नामका नगर है, जो शरद्की तरह निर्मल, चन्द्रकिरणोंकी तरह उज्ज्वल और अपने गृहशिखरों से आकाशको आहत करनेवाला है ||१|| २ उसमें श्री जितसेन नामका, अपनी प्रणयिनी जितसेनाके लिए राग उत्पन्न करनेवाला राजा निवास करता था । उसका परस्त्रियोंसे दूर रहनेवाला रतिसेन नामका पुत्र हुआ, एक और दूसरा धृतिसेन नामका । वे दोनों ही जन जैसे साक्षात् कामदेव थे । वे दोनों ही पूर्ण कामनावाले थे। वे दोनों ही सूर्य और चन्द्रमाके आश्रय थे। वे दोनों ही विजयलक्ष्मी के घर थे । वे दोनों ही दूसरोंके कल्याणका विवेक रखते थे, वे दोनों ही लोगोंके प्रति विनयशील थे । गुरुदेव, मित्रों और बन्धुजनों के लिए विनीत रतिसेनको कालने उठा लिया। माता-पिता, करपल्लवोंके अग्रभागसे ( हथेलियोंसे ) अपने उर पीटते हुए शोकसे व्याकुल होकर मूच्छित हो गये । वे स्वयंको घर और द्वारको कुछ भी नहीं समझते । पुत्रका स्नेह मुनियोंके लिए भी दुर्निवार होता है । धत्ता - शान्ति करनेवाले मन्त्रियोंने मूच्छित और पड़े हुए तथा रोते हुए उन दोनों को जिनवर - वचनरूपी रसायन दिया ॥२॥ For Private & Personal Use Only ४. A P दक्खारसु । ५. A करसणियहं । ६. AP सुत्थ 1७. AP सुभिक्खु । ८. A P विभि । ९. AP महिलु । १०. | ११. A POहलु | २. १. A संपुण्णकाम | २. A विज्ञेय but gloss विवेक: । ३ AP घर दुवारु । ४. AP कुलमंतिहि । ५. A वयण रसायणु । ४ www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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