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________________ २२ ५ १० उडुसयाई इगिवीस सहासई चउसयाई णवसहसई सिट्ठईं केवलणाणिहिं वीस सहा सईं ताईं जि पुणु चसयहिं समेयइं तवसमसहसई पुणरवि उत्तई सग्गारोहणसुहयणिसे णिहिं तेत्तियई जि पण्णासइ रहियई एंबे गणंतगणंतहुँ आयउ अजह लक्खईं तिण्णि समासविं तेत्तिय हउं सावय आहासवि संखारहिय देव णिद्देस विं ११ सिहरिहि दरिसियदरिमय वे यहु मासमेत थि पडिमाजोएं महापुराण २५ सिक्खुरिसिहिं विमुक्कघणास | णाणत्तय संजुत्तहं दिट्ठईं । जाई अनंगसंगणिण्णासई । विक्करियारिद्धिहरहं णेयई । चसयाई पण्णासइ जुत्तेई । संभई मणपज्जवणाणिहिं । दिण्णुत्तर विवाइहिं विहिये । एक्कु लक्खु भिक्खुहुं संजायउ । उप्पर सहसई वीस णिवेसविं । पंचलक्ख अणुवइयहिं घोसव" । देवहिं कि परमाणु गवेसविं । घत्ता - इय एत्तियसंघें परियरिउ पुग्वहं विरइयपेरेंहिय || "तेपण्णलक्खु महियलि भमिवि बारहव रिसहिं विरहि ||२५|| 93 २६ पुणु अवसाणि गंपि संमेयहु | जाणेमि णाहु विमुक्कउ जोएं । | ३८. २५. १ २५ धनकी आशासे रहित इक्कीस हजार सातसौ शिक्षक मुनि थे। नौ हजार चार सो, तीन ज्ञानोंसे युक्त ( अवधिज्ञानी ) कहे गये हैं । कामके संगका नाश करनेवाले बीस हजार केवलज्ञानी । इतने ही अर्थात् बीस हजार और चार सौ विक्रिया ऋद्धिवालोंको जानना चाहिए। स्वर्गारोहणकी सुखद नसैनी मन:पर्यय ज्ञानी बारह हजार चार सौ पचास पचास रहित इतने ही अर्थात् बारह हजार चारसौ उत्तर देनेवाले अनुत्तरवादी । इस प्रकार गिनते-गिनते एक लाख भिक्षु हो जाते हैं, संक्षेपमें तीन लाख बीस हजार आर्यिकाएँ और इतने ही मैं श्रावक कहता हूँ । मैं पाँच लाख अणुव्रतियों (श्राविकाओं) की घोषणा करता हूँ। मैं देवोंका संख्यारहित निर्देश करता हूँ । देवियों के परिमाणकी में क्या खोज करू ? धत्ता - इस प्रकार इतने संघसे घिरे हुए, बारह वर्ष कम त्रेपन लाख पूर्वतक, दूसरोंका हित करते हुए उन्होंने धरतीपर परिभ्रमण किया ||२५|| Jain Education International २६ जिसकी घाटियों में हरिणोंका वेग दिखाई देता है, ऐसे सम्मेदशिखरपर वह अन्तमें गये । एक माह तक प्रतिमायोग में स्थित रहे। मैं जानता हूँ फिर स्वामी योगसे विमुक्त हो गये । इस २५. १. A P° संजुत्तइं । २. P° उत्तई । ३. A P सुहणिस्से णिहिं, but T सुह सुखद । ४. P संभूयहि । ५. P वहियई । ६. AP एम । ७. AP समासमि । ८. AP णिवेसमि । ९. A P सावई आहासमि । १०. A P घोसमि । ११. A P णिद्दे समि । १२. AP कहि ! १३ AP गवेसमि । विहरइ परहिय । १५. A तेवण्ण लक्ख; P सो एक्कु लक्खु । १४. AP २६. १. A दावियदरिसरिवेयहु; P दरिसियदरिसरिवेयहु । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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