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________________ २० जय चक्कपाणि बहुसोक्ख दिवि एम सुरिंदें सत्तिइ माणखंभसरवरसर परिहहिं णिम्मियपायारेहिं विचित्तिहिं कप्पदुमचेईहरचिंधहिं सालाहि तं वियहिं तोरणरयणालंकियदोमहिं जं ऍहउं तहिं मोक्खहु पंथिउ पुर्व्वासासंमुहुं आसीण महापुराण घत्ता— तुह गब्भणिवासि हिरण्णमयविट्ठिइ सुट्टु पसिद्धउ ॥ तुहुं तेण हिरण्णगर्भे भणिउ अण्णहु ऐउँ णिसिद्धउ ||२२|| जय दिव्वणाणि । जय गरुलकेउ । २३ Jain Education International [ ३८. २२.१६ विरइड समवसरणु जिणभत्तिइ । सेकुसुमवेल्लिहिं मरगयफलिहहिं । हहिं सुरयं तमणि दित्तिहिं । धूवह डेहिं सुधूर्व सुगंध हिं । थामि थामि मणिमय मंडवियहिं । कणयदंडवरफणिपडिहारहिं । अजियाहु सीहासणि संठिउ । किं वण्णमि तेल्लोक पहाणउ | ( धर्मचक्र, चक्राकार धनुषवाले) आपकी जय हो । हे चक्रपाणि ( हाथमें चक्रका लांछनवाले, चक्रवाले ) आपकी जय हो । हे दिव्यज्ञान आपकी जय हो । बहुसोक्खहेउ ( बहुत लोगोंके सुखके कारण, वधुओंके सुखके कारण ) हे गरुडध्वज आपकी जय हो । घत्ता - गर्भ में स्थित रहनेपर हिरण्यमय वृष्टिसे आप बहुत प्रसिद्ध हुए इसी कारण आप हिरण्यगर्भ कहे गये, दूसरेके लिए, यह नाम निषिद्ध है ॥२२॥ २३ इस प्रकार देवेन्द्रने वन्दना कर, मानस्तम्भों, सरोवरों, सरों और परिखाओं, पुष्प सहित लताओं, मरकत और स्फटिक मणियों, बनाये गये विचित्र परकोटों, सूर्यकान्तमणियोंसे दीप्त थूनियों, कल्पवृक्षों, चैत्यगृहों और चिह्नों, सुन्दर धूप से सुगन्धित धूपघटों, जिनमें ताण्डव नाट्य किया जा रहा है, ऐसी नाट्यशालाओं, स्थान-स्थानपर मणिमय मण्डपों तोरणों, रत्नों से अलंकृत मालाओं, स्वर्णदण्ड धारण करनेवाले श्रेष्ठ ...? प्रतिहारोंसे, उसने ( देवेन्द्रने ) शक्ति और भक्तिके साथ जब ऐसे समवशरणकी रचना की, तो मोक्षके पथिक अजितनाथ सिंहासनपर स्थित हो गये । पूर्व दिशा के सम्मुख बैठे हुए उन त्रिलोक श्रेष्ठ का मैं क्या वर्णन करूं ? ३. A P दिव्ववाणि । ४. AP ब्भु । ५. A एउ ण सिद्धउ । २३. १. P सुकुसुमं । २. P सुगंधसुगंधहि । ३. A णट्टमंडवियहि । ४. A P रयणतोरणालं । ५. AP ह | ६ AP दंडधर । ७. P जं एहउ तं सक्कें पत्थिउ, जगकारुण्णं आवेष्पिणु थिउ । ८. P पुव्वासामुहं तेण आसीणउ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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