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________________ महापुराण [६७. ३.१३ घत्ता-तम्मि कालए अमलिणवेसहो। सोहम्माहिवो कहइ धणेसहो ॥३॥ सुणि इह भरहे अंगए विसए धम्मवसंगए। मिहिलाउरणयराहिवो दीणेसु य पसरिय किवो। रिसहगोत्तवंसुब्भवो कुंभो णाम महाणिवो। किं किर कहमि महासई देवी तस्स पँयावई। णिकंदप्पो णिन्भओ होही ताणं अब्भओ। मुवि हिरण्णगब्भो गुणी जं थुगंति देवा मुणी। कुणसु तस्स णयरं तुमं ता धणएण अणोवमं। सहसा रइयं तं पुरं रयणजालफुरियंबरं। पुण्णाणं पिव संचए पासाए मणिमंचए। राइविरामे सुत्तिया पेच्छइ पंकयणेत्तिया । साहियसिरियणुभवणए एए सोलह सिविणए। __घत्ता-पूर्ण मत्तयं धोरेयं सियं । सारंगाहिवं गोवद्धणपियं ॥४॥ पत्ता-उस समय स्वच्छ वेशवाला सौधर्म इन्द्र कुबेरसे कहता है ॥३॥ "सुनो, भरतक्षेत्रके धर्मके वशीभूत अंगदेशमें मिथिलापुर नामके नगरका राजा है, जो दीनोंके प्रति कृपाका विस्तार करनेवाला है। जो ऋषभके गोत्र और वंशमें उत्पन्न हुआ है, ऐसा कुम्भ नामका महान् राजा है। उसकी देवी महासती प्रजावती है। उसका मैं क्या वर्णन करूं? उससे कामदेवका नाश करनेवाला निष्कलंक बालक उत्पन्न होगा, जो संसारमें हिरण्यगर्भ ( ब्रह्मा) होगा, और जिसकी देव और मुनि स्तुति करते हैं, उसके लिए तुम सुन्दर नगर बनाओ।" तब कुबेरने सहसा अनुपम, जिसके रत्नजालसे आकाश स्फुरित है ऐसा मिथिलापुर नगर बनाया। पुण्योंके समूहके समान प्रासादमें मणिमय मंचपर सोते हुए रात्रिके अन्तमें वह कमलनयनी, जिसमें लक्ष्मीके भोगको कहा गया है, ऐसे स्वप्नमें ये सोलह ( चीजें ) देखती है। घत्ता-मतवाला गज, सफेद बैल, सिंह, लक्ष्मी ।।४।। ४. १. A महिलावरं । २. A दीणेसुं; P दीणेसु पसरियं । ३. AP महाहिवो । ४. AP पहावई । ५. A तासु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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