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________________ ४६६ महापुराण ६६.१.८ चकंकियकरयलु पायपउमु हकारिउ मामें सो सुभैउमु । विहवत्तणदुक्खोह रियछाय अण्णहि दिणि पुच्छिय तेण माय । संडिल्लु मामु तुहुं जणणि माइ पर ताउ ण पिच्छमि महुरवाइ। विणु ताएं पुत्तु ण होइ जेण महु संसउ वट्टइ कह हि तेण । घत्ता-भंणु हउं कासु सुर महियलि मंडणउ पहिल्लउं ॥ भणु किं कारणेण तुह हस्थि णत्थि कईंल्लउं ॥१॥ २ www तावम्महि अंसुजलोल्लियाई णयणई णं कमलई फुल्लियाई । जाणिवि णियतणयहु तणिय सत्ति पडिलवइ सहसमुयरायपत्ति । सुणि सुय जो सुव्वइ परसुरामु तें मारिउ तुह पिउ अतुलथामु । तावट्ठवीसधणुदंडतुंगु वण्णे कगयच्छवि रणि अहंगु। तं णिसुणिवि णं जमरायदूउ आरुट्ठ अरिहि सिहिचुरुलिभूउ । चूडामणिकिरणालिहियमेहि तावेत्तहि रेणुयतणयगेहि । दिउ णारायणकमकमलभसलु संपत्तउ कैहि मि णिमित्तकुसलु । सो पुच्छिउ तेण कयायरेण उद्धरियसंधरधरगुरुभरेण । सहसयरसिरुप्पललूरणेण णियजणणिमणोरहपूरणेण । वज्रका आघात हो, जिसका हाथ चक्रसे अंकित है, जिसके पैरोंमें शंख हैं, ऐसे उस कुमारको मामा शाण्डिल्यने सुभौम कहकर पुकारा। वैधव्यके दुःखसे जिसके शरीरको कान्ति नष्ट हो गयी है ऐसी अपनी मांसे उसने एक दिन पूछा, "हे मां, शाण्डिल्य मामा है और तुम जननी हो, परन्तु मधुर बोलनेवाले पिताको मैं नहीं देखता हूँ। परन्तु बिना पिताके पुत्र नहीं हो सकता इसीलिए मेरा सन्देह बढ़ रहा है आप बताइए। पत्ता-कहो, मैं किसका पुत्र हूँ ? पृथ्वीतलपर मैं किसका पहला मण्डन हूँ ? बताओ किस कारण तुम्हारे हाथमें कड़ा नहीं है" ॥१॥ २ तब माताके नेत्र अश्रुजलसे आर्द्र हो उठे, मानो खिले हुए कमल हों। अपने पुत्रकी शक्तिको जानते हुए सहस्रबाहुकी पत्नी प्रत्युत्तर देती है, "हे पुत्र सुनो, जो परशुराम कहा जाता है उसने अतुलशक्तिवाले तुम्हारे पिताका वध किया है। जो अट्ठाईस धनुष प्रमाण ऊंचे थे, रंगमें स्वर्णकान्तिके समान और युद्ध में अभग्न थे।" यह सुनकर आगकी ज्वाला बनकर वह शत्रुपर इस प्रकार क्रुद्ध हो गया, मानो यमराजका दूत हो। जिसके शिखरमणिकी किरणोंसे मेघ अंकित हैं, ऐसे रेणुकाके पुत्रके घर नारायणके चरणकमलोंका भ्रमर एक निमित्तशास्त्री ब्राह्मण आया। जिसने पर्वत सहित धरतीका गुरुभार उठाया है, ऐसे सहस्रबाहुके सिररूपी कमलको काटनेवाले तथा अपनी मांके मनोरथोंको पूरा करनेवाले उसने आदर करते हुए पूछा ७. A सुभूमु । ८. A°दुक्खें हरिय। ९. A भणु कासु सुउ हउं महिलहि मंडणउ । १०. AP कडउल्ल। २. १. AP ता अम्महि । २. AP रिउहि । ३. A कह व । ४. A सघरगुरुभायरेण । ५. A पूरएण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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