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________________ ४४९ -६५. ६.११ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित सारयब्भु पविलीणु णियच्छिवि लच्छिविहोउ असेसु दुगुंछिवि । जीविउ देहु असारु वियप्पिवि अरविंदहु महिरजु समप्पिवि घत्ता-खीरवारिपरिपुण्णहिं तारहारसियहिं । हाइवि मंगलकलसहिं सुरपल्हत्थियहिं ॥ ५॥ णिसुणिवि सारस्सयसंबोहणु वइजयंतसिबियहि आरोहणु । करिवि सहेउयवणु तं जेत्तहि गउ तुरिएण महापहु तेत्तहि । मियसिरजुत्तमासि दहमइ दिणि चंदिणि रेवइरिक्खि सुसोहणि । अवरणहइ छट्टेणुववासे णिक्खंतउ सहुँ रायसहासे । लुचिवि कुंतल णिम्मोहालां लिंगु असंगु लेवि णिच्चेलउं । मणपज्जयधरु सुद्धिणिरिक्खहि बीयइ दियहि पइट्ठउ भिक्खहि । चक्कणयरि अवराइयणरवें पाराविउ अमरासुरसुरवें। तहु घरि पंच वि चोज्जई घडियई कुसुमई रयणइं गयणहु पडियई । तवतावें णियतणु तोवंतउ सोलहवरिसई महि विहरतउ । घता-दिक्खावणु आवेप्पिणु कत्तियमासि पुणु ।।। सियबारहमइ वासरि सुरवरणवियगुणु ॥ ६॥ दोनोंको प्रसन्न कर शरद्के मेघको लीन होते देखकर, अशेष लक्ष्मी-विभोगको निन्दा कर जीवन और देहको असार समझकर, अरविन्द (पुत्र) को महाराज्य देकर । घत्ता-क्षीर समुद्रके जलोंसे परिपूर्ण, तार और हारके समान स्वच्छ मंगलकलशोंसे, देवपंक्तियों द्वारा स्नान कराकर ||५|| लौकान्तिक देवोंका सम्बोधन सुनकर, वैजयन्त शिविकापर आरोहणकर, जहाँ वह सहेतुकवन था, वहां महाप्रभु तुरन्त गये। मार्गशीर्षके शुक्ल पक्षकी दसमीके दिन, सुशोभन रेवती नक्षत्र में अपराल में वह छठा उपवास कर एक हजार राजाओंके साथ दीक्षित हो गये। केश लोंच कर निर्मोहसे युक्त असंग चिह्न और दिगम्बरत्व लेकर, वह जिसमें शुद्धिका निरीक्षण है, ऐसी भिक्षाके लिए दूसरे दिन प्रविष्ट हुए। चक्रनगरमें अमरों और असुरोंके समान सुन्दर स्वरवाले राजा अपराजितने उन्हें आहार दिया। उसके घरमें पांचं आश्चर्य प्रगट हुए । पुष्पों और रत्नोंकी आकाशसे वर्षा हुई। तपके तापसे अपने शरीरको तपाते हुए तथा सोलह वर्ष तक धरतीपर विहार करते हुए। घत्ता-दीक्षावन ( सहेतुकवन ) में आकर, सुरवरोंसे जिनके गुण प्रणम्य हैं, ऐसे वह कार्तिक शुक्ला द्वादशीके दिन ॥६॥ ६. १. A सारयस्स । २. AP तावंतह । ३. AP विहरंतहु । ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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