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________________ -६५.४.५] महाकवि पुष्पदन्त विरचित ३ एत्थु भरहि कुरुजंगलि जणवइ राउ सुदंसणुतहु गुणजलसरि एयह दोहं वि होसइ जगगुरु ता तं जाइवि जक्खें रइयउ णिसि हुं सुत्तई पियकमणीयइ करि करोड पंचाणणु गोमिणि सफरुल्लय दो कलस सुहायर सीहास विमा णायालउ जायवे दीहरजालावलि घत्ता - देविइ सुत्तविद्धिइ अक्खिर णरवइहि || ते वि फलु विहसेपणु भासिउ तहि सइहि ॥ ३ ॥ जो जाणइति णि परु अप्पर तं सुणिषि हरिसिय सीमंतिणि कंति किति सइ बुद्धि भडारी जा छम्मास ताम घरि चंदिरु फग्गुणि चंदविसुद्ध हि तइयहि कुंजरपुरवर मारुयधुयधइ । मित्तसेण णामेण घरेसरि । तुहुं करितो तुरि कंचनपुरु | पट्टणु रयणकिरणअइसइयउ | सिविणयपंति दिट्ठ रमणीयइ । मालाजुयल चंदु हयलमणि । विमलसलिलकमलायर सायर । मरिंबु मँऊहकरालउ । इय जोइवि ताए सिविणावलि । ४ सो तुह सुउ होसइ परमप्पड | आइय घरु सिरि दिहि हिरि कामिणि । भसुद्धि कय सुहइं- जणेरी । वैत्तिरं जक्खें लोयाणंदिरु । णिसिपच्छिम संझहि रेवइयहि । Jain Education International ३. १. AP तुरिउ ताहं । २. A सुहसुत्त । ३ AP मयूहं । ४. A विबुद्धर । ४. १. APतिहुवणु । २. P सुणिवि । ३. A खित्तय; P घित्तठ । ४४७ ३ यहाँ भरतक्षेत्रके कुरुजांगल जनपद में जिसमें हवासे ध्वज हिलते हैं, ऐसा हस्तिनापुर नगर है, उसमें राजा सुदर्शन है । उसको गुणरूपी जलकी नदी मित्रसेना नामकी गृहेश्वरी थी । इन दोनों विश्वगुरु जन्म लेंगे, तुम शीघ्र उनके लिए स्वर्णनगरको रचना करो। तब कुबेरने जाकर रत्न किरणोंसे अतिशमित नगरकी रचना की। प्रिय रमणी कामिनीने रात्रिमें सुखसे सोते हुए स्वप्नमाला देखी । हाथी, बैल, सिंह, लक्ष्मी, मालायुगल, चन्द्रमा, सूर्य, दो मत्स्य, दो शुभाकार कलश, विमल जल और कमलोंका सरोवर, समुद्र, सिंहासन, विमान, नागलोक, किरणोंसे भास्वर मणिसमूह और दीर्घ ज्वालावलीसे युक्त आग। इस प्रकार स्वप्न देखकर उस धत्ता - देवीने सोते से जागकर, राजासे कहा। उसने भी हँसते हुए उस सतीसे उसका फल बताया ॥३॥ १० ४ जो त्रिभुवनमें स्वपरको जानता है, वह परमात्मा तुम्हारे पुत्र होंगे। यह सुनकर वह सीमन्तिनी हर्षित हो उठी । घरपर श्री, धृति, हो, कान्ति, कीर्ति, सती और बुद्धि आदि आदरणीय देवियाँ आयीं और उन्होंने सुखको उत्पन्न करनेवाली गर्भशुद्धि की । जब छह माह बाकी बचे तो कुबेरने लोगों को आनन्द देनेवाले सोनेकी घरपर वर्षा की। फाल्गुन कृष्णा तृतीयाके दिन, रात्रिके For Private & Personal Use Only ५ www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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