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________________ ४४४ महापुराण [ ६४. ११.५तुंबरुणारयसंगीयगेय विरइय जिणपडिबिंबाहिसेय । मालाविजाहरपिहियगयण मुणिघोसियणाणाथोत्तवयण । णवकमलकलसदप्पणसमेय धवलायवत्तधयसंखसेय । दूवंकुरदहिचंदणपसत्थ वंसग्गविलंबियदिव्ववत्थ । सण्णाणि सुदंसणि विउलबुद्धि णिव्वाणपुज महुँ देउ सुद्धि । घत्ता-सुहं कुंथु भडारउ देउ महं वंदिउ भरहणरिंदहिं ।। सियपुप्फयंतउजलमुहहिं णमिउ फणिंदसुरिंदहिं ॥११॥ इय महापुराणे तिसहिमहापुरिसगुणालंकारे महामन्वभरहाणुमण्णिए महाकइपुप्फयंतविरइए महाकव्वे कुंथुचकहरतिस्थयरणिव्वाणगमणं णाम चउसटिमो परिच्छेओ समत्तो ॥६॥ रहे हैं, तुम्बुरु और नारदके द्वारा गीत गाये जा रहे हैं, जिन प्रतिबिम्बोंका ऐसा अभिषेक किया गया। जिसमें विद्याधरोंकी कतारोंने आकाशको ढक लिया है, जिसमें मुनियोंके द्वारा नाना स्तोत्रवचन घोषित किये जा रहे हैं, जो नवकमल-कलश और दर्पणसे युक्त हैं, जो धवल आतपत्र ध्वज और शंखोंसे श्वेत है। दूर्वांकुर, दही और चन्दनसे प्रशस्त है, जिसमें बांसोंपर दिव्यवस्त्र अवलम्बित हैं, ऐसी निर्वाण पूजा, मुझे ज्ञान और दर्शनसे युक्त विपुल बुद्धि और शुद्धि प्रदान करे । पत्ता-भरतादि नरेन्द्रोंसे वन्दित, श्वेत नक्षत्रोंके समान उज्ज्वल मुखोंवाले नागेन्द्रों-सुरेन्द्रों द्वारा नमित आदरणीय कुन्थुदेव मुझे सुख प्रदान करें ॥११॥ ब्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका कुन्थु चक्रवर्ती और तीर्थकर निर्वाण गमन नामका चौसठवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥६॥ ५. AP खेयरविसहरचंदहिं । ६. AP कुंथुचक्कवट्रितित्थयरपुराणं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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