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________________ ४३४ महापुराण [६३.११.१ नृवु सिरिसेणु पुणु वि जो कुरुणरु देउ खयरु सुरु हलि पवरामरु । वजाउहु सुरवइ घणसंदणु सम्वत्थाहिवु अइरहि णंदणु । दरिसउ मज्झु सयलु सयलायरु होउ पडतहु लहु लग्गणतरु । देवि अणिंदिय कुरुणरु माणउ सुरु सिरिविजउँ महीयलराणउ । अमयासउ अणंतवीरिउ हरि णारउ जोइयवइतरणीसरि । मेहणाउ पडिहरि सहसाउहु . कप्पणाहु दढरहु पहसियमुहु । पुणु सव्वत्थसिद्धि परमेसरु चक्काउहु सुहुँ देउ रिसीसरु । संति भंति विहुणेवि महारी करउ कसायसंति गरुयारी। घत्ता-भरहेसह जियसरु मुणिपवरु जहिं गउ जिण तुहं तेत्तहि ।। ___ मई पावहि सिद्धालयमहि पुप्फयंतरुइ जेत्तहि ॥११॥ इय महापुराणे तिसट्टिमहापुरिसगुणालंकारे महाभब्वभरहाणुमण्णिए महाकहपुप्फयंतविरइए महाकठवे संतिणाहणिवाणगमणं णाम तिसहिमो परिच्छेओ समत्तो ॥१३॥ कुरुमानव जो राजा श्रीषेण थे, वह देव ( भोगभूमिमें ) विद्याधर, देव फिर प्रवर अमर, वज्रायुध, इन्द्र, मेघरथ, फिर सर्वार्थसिद्धि में अहमेन्द्र और फिर ऐराके पुत्र (शान्तिनाथ ) हुए। वह मुझे समस्त सकलाचार दिखायें और गिरते हुए मुझे आधारस्तम्भ हों, और जो अनिन्दिता देवी कुरुकी नर हुई थी, फिर श्रीविजयदेव, फिर महीतलका राजा, अमृताशय अनन्तवीर्य, नारायण, वैतरणी नदीको देखनेवाला नारको, मेघनाद प्रतिनारायण, फिर सहस्रायुध, कल्पदेव, प्रहसितमुख दृढ़रथ, फिर सर्वार्थसिद्धिका देव और तब परमेश्वर चक्रायुध ऋषीश्वर देव सुख दें। हमारी विद्यमान भ्रान्तिको नष्ट कर वे मेरी भारी कषायशान्ति करें। पत्ता-हे जिन, कामको जीतनेवाला मुनिप्रवर भरतेश्वर जहां गया, और जहां आप गये हैं, और जहां चन्द्र और सूर्यके समान दीप्ति है, वह सिद्धालयभूमि मुझे प्राप्त करा दो ॥११॥ . इस प्रकार ब्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यमें शान्तिनाथ निर्वाण गमन नामका ब्रेसठवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥३॥ ११.१. AP णिउ । २. A विज्जाउह। ३. Pकुरुतणमाणउ। ४. AP सिरिविज्जउ महियलि । ५. AP पुप्फदंद। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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