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________________ महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण संधि ३८ बंभहु बंभालयसामियहु ईसहु ईसरवंदहु || अजहु जियकाम कामयहु पणविवि परमजिदिहु || ध्रुवकं ॥ १ सुरुओं वीरमघोरं उवसमणिलयं कंदरवालं मंदरसिंत्तं रामारमणे Jain Education International विणयजणाणं जेण कयं तं आलोयंते भइ जसोहो णाही ताणं सुहरु मेहं । वयविहिघोरं । पसमियणिलयं । कंदरणीलं । मंदर सितं । रामारमणे । विणयजणाणं | जेण कयंतं । आलोयंते । भवेइजसोहो । जो भत्ताणं । सन्धि ३८ ब्रह्मा (परमात्मा ) मोक्षालय के स्वामी, ईश्वरोंके द्वारा वन्दनीय, ईश, जिन्होंने कामको जीत लिया है, जो कामनाओंको पूरा करनेवाले हैं, ऐसे परम जिनेन्द्र अजितनाथको में प्रणाम कर । १० १ जिन्होंने रोगों ( काम-क्रोधादि ) के समूहका नाश कर दिया है, जो पुण्यरूपी वृक्षके लिए मेघ के समान हैं, जो वीर ओर सोम्य हैं, जो व्रतोंके आचरण में कठोर हैं, जो उपशम ( शान्तभाव ) के घर हैं, जिन्होंने मनुष्यों के विनाशको शान्त कर दिया है, जिनकी ध्वनि (दिव्य ध्वनि ) मेघकी ध्वनि के समान है, गुफा ही जिनका घर है, जिनका सुमेर पर्वतपर अभिषेक हुआ है, जिसमें धन और कामका मन्थन है ऐसे स्त्रीरमण में जिनकी मन्दरसता है, जिन्होंने विनत जनोंके लिए विनयजज्ञान ( श्रुतज्ञान ) दिया है, जो यमको नहीं देखते, जिनका यश-समूह चन्द्रमाको किरणों के समान शोभावाला है, तथा लोकपर्यन्त परिभ्रमण करता है, जो भक्तोंका त्राण करने १. १. A भवइ । २. A भमइ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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