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महापुराण
[६२. १०.१
णरखेत्तु गिरीसरिमालियां । मणुसुत्तरु जाम णिहालियां । तहु उप्परि मणुयह णत्थि गइ । पल्लह सविम्हैयभिण्णमइ । पडिआया धणरहनृवैणयरु जयजयस पइसरिवि घरु । पुन्जिवि कुमार गय तियस तहिं णंदणेवणि णियणयराई जहिं । संसारु असारु विवेइयउ
इंदियकंखइ पडिचोइयउ । घणरहिण पुत्तु हक्कारियउ
मेहरहु रजि वइसारियउ । लोयंतिएहिं उद्दीवियां
वेरग्गु तेणे णिरु भावियउं । जाणे माणिक्कविराइएण
णरखयरसुरिंदुच्चाइएण । गउ वणि किउ देवें तवचरणु उप्पायउ केवलु मलहरणु । घत्ता-भूगोयरखगरायहिं चउविहदेवणिकायहिं ।। णमिउ जिर्णिदु यत्तिइ तणएं जाइवि भत्तिइ ॥१०॥
११ अण्णहिं दिणि वणि तरुकोमलइ । पियमित्तइ समउं सिलायलइ । आसीणउ राणउ मेहरहु
जांवच्छइ ता ढक्कंतु णहु । विज्जोहरविजाचोइयां
उपरि विमाणु संप्राइयउं । तं ताहं ण वच्चइ उ वि किह वायरणवियारणु जडहुँ जिह ।
१० पहाड़ों और नदियोंकी मालासे घिरा हुआ जब उन्होंने मानुषोत्तर पर्वत देख लिया तो उसके ऊपर मनुष्योंकी गति नहीं है। विस्मयसे परिपूर्ण मति वह लौट आया। वे पुण्डरीकिणी नगर आ गये। और जय-जय शब्दके साथ घरमें प्रवेश कराकर तथा कुमारको पूजाकर देवता लोग वहां गये। नन्दनवनमें उनके अपने नगर थे। इन्द्रियोंकी आकांक्षासे प्रेरित उसने जान लिया कि संसार असार है। घनरथने अपने पुत्रको पुकारा और मेघरथको राज्यपर बैठाया। लौकान्तिक देवोंने प्रेरणा दी। उन्हें वैराग्य बहुत अच्छा लगा। माणिक्योंसे शोभित मनुष्य विद्याधर और देवेन्द्रोंके द्वारा उठायो गयी पालकीसे वह वनमें गये और देवने वहाँ तपश्चरण किया। उन्हें मलका नाश करनेवाला केवलज्ञान उत्पन्न हो गया।
पत्ता-मनुष्यों और विद्याधरों तथा चार प्रकारके देवनिकायों और पुत्रने पीडाको दूर करनेवाली भक्ति से जाकर जिनकी वन्दना की ॥१०॥
दूसरे दिन वृक्षोंसे कोमल वनमें जाकर चट्टानपर प्रियमित्राके साथ जब राजा मेघरथ बैठे हुए थे कि इतने में आकाशको ढकता हुआ, विद्याधरको विद्यासे प्रेरित एक विमान वहाँ आया। वह उन लोगोंके ऊपरसे एक पग भी उसी प्रकार नहीं चल सका जिस प्रकार मूर्ख लोगोंमें १०. १. A मणुउत्तरु । २. AP सविभयं । ३. AP णिवणय । ४. A पइसे वि; P पइसरवि । ५. A __ °वणणिय । ६. AP तेहिं । ७. A वणु । ८. AP णविउ । ११.१. P ढंकंतु । २. A विज्जाहरु । ३. AP विवाणु संपाइयउं । ४. P वच्चइ उवरि किह ।
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