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________________ ४१० महापुराण [६२. ५.५ अप्पउं मोहें ण विडंबियां ससुएण वउ जि अवलंबियउं । इंदियपडिबलु रणि णिज्जियां अरहतणामु तेणज्जियां। मुउ सम्भावे सम्मयणिरउ । हुउ अंतिमकप्पि पुरंदरउ । सिसु तासु बे वि तेत्थु जि अमर जाया अच्छरकरधुयचमर । दिवि मरिवि बे वि ते भाइवर तिलयंतिम चंद विचंद णर। भुवि जाया गरुलवेयधणहि जाउंडयजडिलमडियथणहि । तं सुणिवि कुमारहिं बोल्लियउं मुणि जम्मतरु उज्वेल्लियउं । भणु अभयघोसु उप्पण्णु कहिं पिउ वसइ जहिं जि गच्छामि तहिं । जइ चवइ पुंडरिंकिणिपुरिहि णंदणु घणमालिणिसुंदरिहि । घत्ता-तणु मेल्लिवि तियसाहिउ जायउ तेलुकाहिउ ।। जो सके पणविज्जइ सो जिणु किं वणिज्जइ ।।५।। तहिं अच्छइ देउ सबंधुयणु जोयंतु कूडकुक्कुडयरेणु। परिभमणणमणउड्डाणणिहि चिंतंतु घोरसंसारविहि । दिव्वासें एहउ वज्जरिर तं सुणिवि खयरभायर तुरिउं । गय बेण्णि वि चिरजणणासयहु पय डेप्पिणु अग्गइ जणसयहु । ५ तायत्तणु तहु ससुयत्तणउं कम्माणुबंधविणियत्तणउं । पांच आश्चर्योंको देखकर उसने अपनेको मोहसे विखण्डित नहीं होने दिया। अपने पुत्रोंके साथ व्रत ग्रहण कर लिये । इन्द्रियरूपी शत्रुओंको उन्होंने जीत लिया। उसने अर्हत् प्रकृतिका बन्ध किया। सम्यग्दर्शनमें निरत वह सद्भावसे मर गया और अन्तिम स्वर्गमें इन्द्र हुआ। उसके वे दोनों पुत्र भी जिनके ऊपर अप्सराओं द्वारा चमर ढोले जाते हैं, ऐसे देव हुए। वे दोनों भाई स्वर्गमें मरकर चन्द्रतिलक और विचन्द्रतिलक नामसे, जिसके स्तन केशरको जटिलतासे मण्डित हैं, ऐसी गरुड़वेगा धन्यासे उत्पन्न हुए। मुनि द्वारा प्रकट किये गये जन्मान्तरको सुनकर कुमारोंने पूछा-मुनिवर बताइए अभयघोष कहाँ उत्पन्न हुए ? जहाँ पिता हैं, हम वहीं जायेंगे ? मुनिवर कहते हैं-पुण्डरीकिणी नगरीकी रानी मेघमालिनीका पुत्र _घत्ता-देवराज शरीर छोड़कर त्रिलोकराज हो गया है। जो इन्द्रके द्वारा प्रणम्य है, उन जिनका वर्णन किस प्रकार किया जाये ? ।।५।। वह देव इस समय बन्धुजनोंके साथ कूट कुक्कुटोंका युद्ध देखते हुए, जिसमें परिभ्रमण नमन और उड़ान को विधि है, ऐसी घोर संसार विधिका विचार करते हुए वहीं पुण्डरीकिणी नगरमें स्थित हैं। दिगम्बर मुनिने यह कहा कि वे दोनों विद्याधर भाई यह सुनकर अपने पुराने पिताके घर गये। सैकड़ों लोगोंके सामने उनका पुत्रत्व सहित पिताका कर्मानुबन्धका ५. १. AP अरहंतु । २. AP बे वि तासु । ३. P जाउडुय । ४. A गच्छामु; P गच्छमि । ५. AP तइलोक्का। ६. १. A रयणु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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