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________________ ३९१ -६१.७.९ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित वयणेण तेण संतुटु बे वि भायर णियमंतिहि रज्जु देवि । गय सिवमंदिरु वित्थारएण कवडें णडिवेसायारएण। दरिसिउ रायहु पडिहारएण जं संजुत्तउं सिंगारएण। दूऐण कहिउ तं एउ राय को सहइ तुहारा विसमघाय । अवराइएण लइ दिण्णु तुज्झु कामिणिजुयलुल्लडं खीणमझु । घत्ता-ता कडयम उडमणिकुंडलहिं कंचीदामहिं भूसियउ । दमियारे मायामाणिणिउ सुइसुमहुरु संभासियउ ॥६॥ करणंगहारबहुरसविसट्टु बीयइ दिणि अवलोएवि णटु । वीणाझुणि घणथण मज्झखाम अदुईय धीय कणयसिरिणाम । अप्पिय ताएं मायाविणीहिं णाडउं सिक्खाविय भाविणीहिं । णञ्चंतिहि तेहि पुणु कामवेसु गाइउ अणंतवीरिउ गरेसु । कण्णाइ भणिउं को सो अणिंदु किं किंणरु किं सुरु किं फणिंदु । कित्तिमरूवाजीवाइ वुत्तु सो कुमरु थिमिर्यसायरहु पुत्त । परमेसरु पहयरिपुरिणिवासु अवराइउ भायरु होइ जासु। उवमिज्जइ सो भुवणयलि कासु ता कण्णहि लग्गउ कामपासु । सा भणइ मोरकेकारवाइ तहु दसणु लब्भइ केमे माइ। वशीभूत विद्याएं शत्रुवधकी बात कहती हैं। इस वचनसे वे दोनों भाई सन्तुष्ट हुए और अपने मन्त्रियोंको राज्य देकर, कपटसे नर्तकियोंके आकारको बनाकर वे दोनों विस्तारसे शिवमन्दिर नगर गये। प्रतिहारीने उन्हें राजा दमितारिको दिखाया। शृंगारक दूतने जो उपयुक्त था वह कहा कि हे राजन्, तुम्हारा विषम आघात कौन सहन कर सकता है। लो अपराजितने तुम्हें क्षीण मध्यभागवाली दोनों नर्तकियां दे दी। घत्ता-तब कटक मुकुट और मणिकुण्डलों तथा कांची दामोंसे विभूषित मायाविनी नर्तकियोंसे दमितारिने मधुर वार्तालाप किया ॥६॥ दूसरे दिन करणों, अंगहारों तथा अनेक रसोंसे विशिष्ट नृत्यको देखकर फिर अपनी वीणाके समान ध्वनिवाली मध्यक्षीणा और सघन स्तनोंकी अद्वितीय कनकश्री नामकी कन्या उन्हें सौंप दी। उन स्त्रियोंने उसे नाटक सिखाया। उसके नाचते हुए कामरूप अनन्तवीर्य राजा (गीतमें) गाया गया। कन्याने पूछा-यह कौन राजा है-क्या किन्नर है, क्या देव है या नागेन्द्र ? वेश्याका कृत्रिम रूप बनानेवाली उन्होंने कहा कि वह स्तिमितसागर राजाका पुत्र है, शत्रुपुरीके निवासोंको आहत करनेवाला परमेश्वर अपराजित जिसका भाई है। धरतीतलपर उसकी उपमा किससे दो जा सकती है। यह सुनकर कन्या कामबाणसे आहत हो गयी। मयूरको केका वाणीमें वह ५. AP add after this : परिमिय ( P परमिय ) जणेहि णोसरिय बे वि । ६. AP दूयएण । ७. १. A तहिं आय धीय । २. AP पुणु तहि । ३. A णरु । ४. तिमिय । ५. AP कण्हइ । ६. P कि ण माइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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