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________________ ३८४ महापुराण [६०. ३२.७तेण तवंत कामविलुद्धउं खयरु णिएवि णियाणु णिबद्धउं । जायउ सुउ आसुरियहि तरुणिहि असणिघोसु रत्तउ चिरघरणिहि । पिउ णियविज्जाविहवें मोहिवि णिय कंचणविमाणि आरोहिवि । पभणइ तिजगणाहु ण रुसिज्जइ. अमियतेय जीवहं खम किज्जइ। णिसुणि णिसुणि किं बहुयइ वत्तई णवमइ जम्मतरि संपत्तइ । घता-धुंव पंचमु चक्केसर इह सोलहमु जिणेसरु । __ भरहि राय तुहुं होसहि पुप्फदंतसिरि लेसहि ॥३२॥ १० महापुराणे विसटिमहापुरिसगुणालंकारे महामव्वमरहाणुमण्णिए महाकइपुष्फयंतविरइए महाकव्वे संतिगाहमवावलिवणणं णाम सहिमो परिच्छेभो समत्तो ॥६॥ तपस्विनीसे उत्पन्न हुआ मृगशृंग नामका पुत्र कहा गया। तप करते हुए उसने विद्याधरको देखकर कामसे लुब्ध निदान बाँधा। वह आसुरी नामकी स्त्रीसे उत्पन्न हुआ और अपनी पुरानी स्त्रीमें अनुरक्त हुआ। प्रिय श्रीविजयको अपनी विद्याके विभवसे मोहित कर और स्वर्णविमानमें चढ़ाकर उसे ले गया। त्रिजग स्वामी कहते हैं कि हे अमिततेज, क्रोध नहीं करना चाहिए। जीवोंको क्षमा करना चाहिए। सुनो-सुनो, बहुत कहनेसे क्या? नौवां जन्मान्तर प्राप्त करनेपर पत्ता-निश्चयसे तुम पाँचवें चक्रवर्ती और यहां सोलहवें तीर्थंकर होगे। तुम भरतक्षेत्रके राजा और मोक्षलक्ष्मी प्राप्त करोगे ॥३२।। इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महामव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका शान्तिनाथ भवावलि वर्णन नामका साठवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥१०॥ ३. P आसुरिहि । ४. AP चिरु घरिणिहि। ५. A थिउ णिय'; P पिउ मयं । ६. P बत्तइ । ७. A ध्रुव । ८. A राउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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