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________________ ३७८ महापुराण [६०.२४. १२घत्ता-दुद्दमपावखयंकरु कहइ णरोहेसुहंकर ॥ उग्गयसंसयसंकहु विजय अमियतेयंकहु ॥२४॥ २५ जंबूदीवि भरहवरिसंतरि मागह विसइ सुसासणिरंतरि । अचलगामि धरणीजडु बंभणु .. अग्गिलबंभणिउररुहसुंभणु । तहु इंदग्गिभूइसुय सुहयर। सुयसत्थत्थमहत्थ मणोहर । कविलु णामु दासेरु अलक्खिउ वेयचउक्त सडंगई सिक्खिउ । कुलविद्धंसणु जाणिउ विप्पं दुज्जसभीएं धाडिउ बप्पें । गउ रयणउरहु भल्ल भाविउं सञ्चैयदियवरेण परिणाविउ । जंबूधरिणिहि हूई सुंदरि सच्चभीम णामेण किसोयरि। कुलणिदिउं करंतु गुणवंतइ वरु कुलहीणु वियाणिउ कंतइ । घत्ता-वर धणोहे चत्तउ आर्यण्णिवि सुयवत्तउ । दालिदें संतत्तउ तहिं जिताउ संपत्तउ ॥२५॥ सपराहवभीएण णमंसिउ तहु पयजुवलु तेण ओलग्गिउं कुलदूसणरुहणीसासुण्हइ कविलें पुरयणमज्झि पसंसिउ । दिण्णउं कंचणु जेत्तिउं मग्गिउं । धणु ढोइवि आउच्छिउ सुण्हइ। पत्ता-दुर्दम पापोंका नाश करनेवाला मनुष्योंके लिए शुभंकर श्रीविजय, जिसके मनमें सन्देहकी कील उत्पन्न है, ऐसे अमिततेजसे कहता है ॥२४॥ २५ जम्बूद्वीपमें भारतवर्षके मगध देशमें, जिसमें निरन्तर सुशासन है ऐसे अचलग्राममें धरणीजट नामका ब्राह्मण था जो अपनी अग्निला ब्राह्मणीके स्तनोंका मर्दन करनेवाला था। उसके शुभ करनेवाले इन्द्रभूति और अग्निभूति नामके पुत्र थे, दोनों सुन्दर थे और उन्होंने शास्त्रोंका अर्थ महार्थ सुना था। उसका कपिल नामका अज्ञात दासी पुत्र था। उसने चारों वेदों और छहों अंगोंको सीख लिया। विप्रने उसे कुलका नाश करनेवाला जानकर, अपयशसे डरकर पिताने उसे निकाल दिया। वह रत्नपुर गया। वहां सत्यक नामक ब्राह्मणने उसे भला समझा और अपनी जम्बू नामकी स्त्रीसे उत्पन्न हुई कृशोदरी सुन्दर कन्या सत्यभामा ब्याह दी। उस गुणवती कान्ताने कुलनिन्दित कर्म करते हुए उसे जान लिया कि यह कुलहीन वर है। घत्ता-केवल धनसे रहित होकर पिता धरणीजट अपने पुत्रका समाचार सुनकर दारिद्रयसे पीड़ित होकर वहीं आया ॥२५॥ २६ ___ अपने पराभवसे डरे हुए (पोल खुलनेके भयसे) कपिलने नगरके लोगोंके बीच उनकी प्रशंसा की। उसने उनके चरण छुए और उसने जितना मांगा, उतना सोना दिया। विकट कर्मके ५. A णराह सुहंकरु । २५.१. A दप्पें । २. AP सच्चई । ३. P सच्चसामि । ४. AP आयण्णिय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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