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________________ -६०.२०.२] महाकवि पुष्पदन्त विरचित ३७३ घत्ता-इय जिह विप्पहिं सिट्ठउं तिह तुहुं आयउ दिट्ठउं ।। सुयरिवि सुयहु सयाणउं देविइ दिण्णु पयाणउं ।।१८।। १९ छत्तछण्णरविकिरणविलासें गय तं वणु ससेण्ण आयासें । दिट्ठ पुत्तु आलिंगिउ मायइ भूमिभाउ णं पाउसछायइ। पयहिं णवंतु विवाणि चडाविउ बीयउ सिसु पोयशु पट्ठाविउ । पहु रहणेउरु णियउ सहरिसहिं अमियतेयरायहु चरपुरिसहिं । कहिउ सो वि सवडंमुहूं णिग्गउ । मिलियउ णं दिसदंतिहि दिग्गउ । पायवडणु घरपाहुणयत्तणु किउ महल्लपरिवाडिपवत्तणु । मंतिउ मंतु कहिउ मंतीसहिं अमियतेयसिरिविजयमहीसहिं । णाम मरीइ वइरिजलसोसहु पेसिउ दूयउ असणिणिघोसहु । तेण वि णारीरयणु ण दिण्णउं । भंडणु भडखंडणु पडिवण्णउं घत्ता-आइये दूय सुहित्तें जलगजडीसुयपुत्तें ॥ । हरिकुलहरपायारहु तहु सिरिविजयकुमारहु ।।१९।। २० दिण्ण विज वीरियपोरिसखणि पहरणवारणि बंधविमोयणि । ओसारियखलखेयरसत्थहं रस्सिसुवेयाइयह समत्थहं । घत्ता-इस प्रकार जैसे विप्रोंने कहा, वैसे ही तुम यहां दिखाई दिये। पुत्रकी याद करके मां ( स्वयंप्रभा ) ने सैन्यके साथ प्रयाण किया ।।१८।। छत्रोंसे जिसमें रविकिरणोंका विलास आच्छन्न है, ऐसे आकाशसे वह सेना सहित उस वनमें पहुंचे। पुत्रको देखा। माताने उसका आलिंगन किया मानो भूमिभागने पावस छायाका आलिंगन किया हो। पैरोंमें पड़ते हुए उसे विमानपर चढ़ाया और दूसरे पुत्र (विजयभद्र) को पोदनपुर भेज दिया। प्रभ ( श्रीविजय ) रथनपुर नगर ले जाया गया। अमिततेजके हर्षसे भरे हुए चरपुरुषोंने राजासे कहा, वह भी सामने निकला और इस प्रकार मानो दिग्गजसे दिग्गज मिला हो। पैर पड़नेसे लेकर गृहके आतिथ्य तक उसने बड़ोंकी परम्पराका प्रवर्तन किया। (अर्थात् परम्पराके अनुसार उक्त शिष्टाचारका पालन किया ) मन्त्रीशोंने अपना विचारित मन्त्र कहा । अमिततेज और श्रीविजय राजाओंने शत्रुरूपी जलको सोखनेवाले मारीच नामक दूतको अशनिघोषके पास भेजा । उसने भी नारीरत्न नहीं दिया, युद्ध और भट-खण्डनको स्वीकार लिया। पत्ता-दूत वापस आ गया। अर्ककोतिके पुत्रने मित्रताके कारण हरिकुलगृहके प्राकार उस श्रीविजय कुमारको-॥१९॥ २० वीर्य पौरुषकी खदान ( युद्धवीर्य ), प्रहरावरण और बन्ध-विमोचन विद्याएँ दी। दुष्ट ३. AP आइउ । ४. कहाण उं । १९. १. P पट्टविउ । २. AP आइए दूए । २०. १. AP परहण । २. A रस्सिसुवेवाइयहं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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