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________________ विषयानुक्रमणिका अड़तीसवीं सन्धि : अजितनाथकी वन्दना ( १-२ ), कविको सृजनसे उदासी ( २-३ ), सरस्वती और भरतकविको समझाना, (३), कविका उत्तर, समयकी विपरीतताका उल्लेख, सृजनको स्वीकृति (४-५), रचनाका उद्देश्य जिनभक्ति ( ५-६ ), वत्सदेश और सुसीमा नगरीका वर्णन ( ६-७ ), विमलवाहन राजाको विरक्ति और तपस्या, विजयका अनुत्तर विमान में जन्म ( ८ ), इन्द्रके आदेशसे कुबेर द्वारा अयोध्याकी रचना; स्वर्णवृष्टि (९), विजयादेवीका सोलह स्वप्न देखना (१०), स्वप्नफल कथन ( ११-१२), अजितनाथका जन्म (१२), अजित जिनका जन्माभिषेक (१३), देवों द्वारा जिनकी वन्दना (१४), विवाहका प्रस्ताव (१५), उल्कापात देखकर विरक्ति (१६), लौकान्तिक देवों द्वारा सम्बोधन और स्तुति (१७), दीक्षा ग्रहण करना (१८), देवेन्द्र द्वारा जिनेन्द्रकी स्तुति; समवसरण की रचना (२०), जिनवर द्वारा तत्त्वकथन (२१), संघका वर्णन (२२) | उनतालीसवीं सन्धि : वत्सावती देशके राजा पुण्डरीकका वर्णन (२४), राजा जयसेनका वर्णन, उसके रतिसेन और धृतसेन पुत्र, रतिसेनकी मृत्यु, पिताका शोक (२५), जितसेन दीक्षा ग्रहण करता है, जयसेन मरकर स्वर्ग में महाबलदेव हुआ, उसके साथ तप करनेवाला सामन्त महारुत भी मरकर सोलहवें स्वर्ग में मणिकेतु हुआ (२६), उनमें तय हुआ कि जो स्वर्ग में रहेगा, वह दूसरेको मर्त्यलोकमें जाकर उपदेश देगा; महाबलको मृत्यु (२७), महाबलका सगरके रूपमें जन्म, उसका चक्रवर्ती बनना, मणिकेतुदेवका आकर समझाना ( २८ ), देवका अपना परिचय देना, सगरकी अनसुनी करना, मणिकेतुका मुनिके रूपमें आना (२९), सगरका उनसे विरक्तिका कारण पूछना, मणिकेतुका उपदेश; सगरपर कोई प्रतिक्रिया नहीं, देवकी वापसी; सगरके साठ हजार पुत्र (३०-३२), सगरका भरत द्वारा निर्मित मन्दिरोंकी सुरक्षाका आदेश, पुत्रोंका वज्ररत्न से कैलासके चारों ओर खाई खोदना, पानीका निकलना, खाइके रूप में गंगाका कैलास पर्वतको घेरना ( ३३-३४), नागभवनका प्रताड़ित होना, मणिकेतु देवका नागराज बनकर पुत्रोंको भस्म कर देना, भीम और भगीरथका जाकर सारा वृत्तान्त राजा सगरको बताना, दण्डी साधुका अवतरण, साधुका उपदेश, उसका वस्तुस्थिति बताना, सगरकी विरक्ति और भगीरथको राजगद्दी मिलना (३४-३७), मणिकेतुका मृत पुत्रोंको जीवित करना, उनका दीक्षा ग्रहण करना, तपस्याका वर्णन, सगरकी निर्वाण - प्राप्ति (३९-४० ) । चालीसवीं सन्धि : सम्भवनाथको स्तुति (४१-४२), कच्छ देशके क्षेम नगरका वर्णन (४३), राजा विमलवाहनका तप ग्रहण करना, सुदर्शन विमानमें जन्म (४४), श्रावस्ती में इक्ष्वाकुवंशका शासन, राजा Jain Education International For Private & Personal Use Only ... १-२३ २४-४० ४१-१७ www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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