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________________ ३६० [६०.३.४ महापुराण देसि सुरम्मइ पंकयणेत्तहु पोयणणयरि पयावइपुत्तहु । विजयाणुयहु महाहवपबलहु कोडिसिलासंचालणधवलहु । मुसुमूरियकंठीरवकंठहु दिण्णी पढमहु हरिहि तिविट्ठहु । जणिउ ताइ सिसु सिरिविजयंकउ । विजयभद्दु कंतीइ ससंक। उत्तरसेढिहि वसियंतेउरि पुरि सुरिंदकंतारि सुगोउरि । घत्ता-परिहावलयसुदुग्गमि रयणदीवणासियतमि ।। पंचवण्णधयसोहणि देवदेविमणमोहणि ॥३॥ खयरु मेहवाहणु पीणत्थणि णाम मेहमालिणि तहु पणइणि । जुइमाला णामें सुय वल्लह ढोइय रविकित्तिहि परदुल्लह । परिणिय पुत्तु तेण तहि जायउ अमियतेउ णामें विक्खायउ । धीय सुतार तारवरलोयण सुंदरि मुणिहिं वि कामुक्कोयण । ताएं पोढत्तणि कयपणयहु दिण्णी सिरिविजयहु ससतणयहु । अमियतेउ भल्लारउ भाविउ जुइवह सुय कण्हें परिणाविउ । मुत्तर तेण णिबद्ध णियाणउं पत्तउ काले अव हियठाणउ । सिरि सिरिविजयहु देवि हियत्ते कामभोयपरिभारविरतं । विजएं तउँ लइयउं आयण्णिवि वित्तु कलत्तु वि तिणेसमु मणिवि । समान स्वयंप्रभा नामकी कन्या उत्पन्न हुई। सुरम्य देशके पोदनपुर नगरमें कमलके समान नेत्रोंवाले. प्रजापतिके पत्र विजयके छोटे भाई महायदोंमें प्रबल. कोटिशिला संचालन सिंहोंकी गरदनोंको मरोड़नेवाले प्रथम नारायण त्रिपृष्ठको वह कन्या दो गयी। उससे श्रीविजयांक पुत्र उत्पन्न हुआ। और कान्तिमें चन्द्रमाके समान दूसरा विजयभद्र। विजया पर्वतकी उत्तर श्रेणीमें जिसमें अन्तःपुर हैं, ऐसा सुन्दर गोपुरवाला सुरेन्द्रकान्तार नगर है। __घत्ता-जो परिखा वलयसे अत्यन्त दुर्गम है, जिसमें रत्नद्वीपोंसे अन्धकार नष्ट हो गया है, जो पंचरंगे ध्वजोंसे शोभित है तथा देव और देवियोंका मन मुग्ध कर लेता है ।।३।। उसमें मेघवाहन नामका विद्याधर राजा था। उसकी प्रिय गृहिणी पोन स्तनोंवाली मेघमालिनी थी। उसकी ज्योतिर्माला नामको प्रिय पुत्री थी, शत्रुओंके लिए दुर्लभ जो अर्ककोतिके लिए दो गई। उसने उससे विवाह कर लिया। वहां अमिततेज नामका पुत्र हुआ। स्वच्छ और श्रेष्ठ आँखोंवाली सुतार नामक कन्या हुई। वह सुन्दरी मुनियोंको भी कामकुतूहल उत्पन्न करनेवाली थी। प्रौढ़ होनेपर पिताने प्रणय करनेवाले अपनी बहनके लड़के श्रीविजयको उसे दे दिया। अमिततेज बहुत भला था। नारायणने ज्योतिप्रभा उसे ब्याह दी। इस प्रकार उसने अपने बांधे हुए निदानका भोग किया, और समय आनेपर नरकभूमिमें पहुंचा । कामभोगके परिभारसे विरक्त हृदय विजयने लक्ष्मी श्रीविजयको देकर तप ले लिया है, यह सुनकर धन और ३. A देससुरम्मइ । ४. १. AP तेण पुत्तु । २. AP णिबद्ध । ३. A अवहियट्ठाणउ; P अवहिठ्ठाणिउ । ४. P वउ । ५. AP तिणसउं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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