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________________ - ५९. १९. १८ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित चलतडयडियपडियसोयामणिता डैणविहडियायलं । सहियं पावसम्म वणतरुतलि विसरिसजलझ लज्झलं ||५|| महिरविडकयविउलविउलयल सिलायलणिहियकाइणं । सूरम्स हिम्मुद्देण सूरेण वरेण विमुक्कराइणं ||६|| सोढुं गंभारवि किरणकलावर्खरवियंभियं । दुद्दमकोह मोहदढलोहमयं णियलं णिसुंभियं ||७|| सहसा दिट्ठसयलसयरायर केवलविमललोयणो । देउ सणकुमारु जइ सुहमइ जायउ सो णिरंजणो ||८|| घत्ता - मइलिउ "मोक्खत्ते कइधिट्ठत्ते काई कइत्तणु पोसइ ॥ भराइणरिंदहं चरिउं अणिदहं पुष्यंतु जइ घोसइ ||१९|| इय ५. ८. महापुराणे विसट्ठिमहापुरिस गुणालंकारे महामन्वमरहाणुमणिए महाकपुष्यंतत्रिरइए महाकव्वे धम्मपरमेट्ठिदंसणपुरिससीहमहुकीलयमघव सणक्कुमारकहंतरं णाम एक्कुणसट्टिमो परिच्छेओ समत्तो ॥ ५९ ॥ समान देहवाले वह घर और वस्त्रका मोह छोड़कर बाहर निवास करने लगे । पावस ऋतुमें वह वनवृक्ष के नीचे, चंचल तड़-तड़ कर गिरती हुई बिजलीसे जिसका अयाल विघटित है, ऐसी असामान्य जलधाराको सहन करते हैं । जिसने महीधरोंके विकट कटकों के समान विपुलसे विपुलतर शिलातलपर अपना शरीर रखा है, ऐसे रागसे मुक्त उस श्रेष्ठ वीरने सूर्यके सम्मुख होकर, ग्रीष्मकाल की रविकिरण-समूहके प्रखर विस्तारको सहकर, दुर्दम क्रोध मोह और दृढ़ लोभमय श्रृंखलाको नष्ट कर दिया। जिससे सकल सचराचर देख लिया जाता है ऐसे केवलज्ञानरूपी नेत्रवाला शुभमति वह सनत्कुमार निरंजन देव हो गया । इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त, महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा रचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य में धर्मनाथ परमेष्ठी सुदर्शन पुरुषसिंह मधुक्रीड़, मघवा और सनत्कुमार कथान्तर नामका उनसठवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ ५९ ॥ ३५७ घत्ता - मूर्खता और कवि की घृष्टतासे मलिन कवित्वका पोषण क्यों किया जाता है कि जब पुष्पदन्त कवि अनिन्द्य भरत आदिका चरित घोषित करता है ॥ १९ ॥ Jain Education International १० १५ For Private & Personal Use Only विणण-विहडिया | ६. AP °वियल । ७. A सूरशिहिमुहेण; P सूरराहिमुहेण । खरं वियंभियं । ९. AP जाओ । १०. AP मुक्खत्तें । www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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