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________________ ३५४ महापुराण [ ५९. १५. २३घत्ता-जिउ मागहुँ वरतणु सुरखेयरगणु जट्टमालितुहिणामरु । ''वसिकिय मंदाइणि साहिवि मेइणि पुणरवि आयउ णिययघरु ।।१५।। दोचालीससद्धधणुतुंगं कणयच्छवि णं मंदिरसिंगं । अंगं तस्स सुलक्खणवंतं कामिणिमणसंखोहणवंतं । पंचलक्खव रिसह बद्धाउ णिञ्चं सिद्धसमीहियधाउ। दिव्वकामभोएं भोत्तणं चक्कवट्टिरिद्धि मोत्तणं । प्रियमित्तहु पुत्तहु दाऊणं सव्वं जिणतञ्चं णाऊणं । मणहरउज्जाणं गंतूणं अभयघोसदेवं थोत्तूणं । गहिउं दिक्खं सहिउं दुक्खं जिणि तण्हं णिदं मुक्खं । मघवंतो पयणयमघवंतो रयपरिचत्तो मोक्खं पत्तो। घत्ता-जहिं कामु ण कामिणि दिणु णउ जामिणि ताराणाहु ण णेसरु ॥ जहिं वसइ ण सज्जणु भसइ ण दुजणु तहिं थिउ मघवमहेसरु ॥१६॥ काले जंतें अवरु जिह मुंवु उप्पण्णउ कह मि तिह । चिंधचीरचुंबियखयलि इह विणीयपुरि छुहधवलि । घत्ता-उसने मागध वरतनुको जीत लिया। देव-विद्याधर-गण, नृत्यमाल और हेमन्तकुमारको जीत लिया। मन्दाकिनीको अपने वशमें कर लिया। इस प्रकार धरतीको सिद्ध कर वह पूनः अपने घर आ गया ||१५|| १६ उसका शरीर साढ़े चालीस धनुष ऊंचा था स्वर्णकी छविवाला, मानो मन्दराचलका शिखर हो। उसका शरीर सुन्दर तथा अच्छे लक्षणोंसे युक्त था, यह कामिनीके मनको क्षुब्ध करनेवाला था। उसकी आयु पांच लाख वर्ष की थी और नवनिधानरूप स्वर्णादि धातुएं उसे नित्यरूपसे सिद्ध थीं। दिव्य कामभोग भोगकर, चक्रवर्तीकी ऋद्धिको छोड़कर, अपने पुत्र प्रियमित्रको देकर, समस्त जिनतत्त्वको जानकर, मनहर उद्यानमें जाकर, अभयघोष देवकी स्तुति कर उसने दीक्षा ले ली, दुःख सहा, तृष्णा, निद्रा और भूख जीत ली। जिसके चरणोंमें इन्द्र प्रणत है, ऐसा मघवा चक्रवर्ती कर्मरजसे परित्यक्त होकर मोक्ष गया। पत्ता-जहाँ न काम है और न कामिनी । न दिन है और न यामिनी। न चन्द्रमा है और न सूर्य। जहाँ न दुर्जन रहता है, और न सज्जन बोलता है। मघवा महेश्वर वहाँ निवास करता है ॥१६॥ समय बीतने पर जिस प्रकार एक और राजा हुआ, मैं उसो प्रकार उसकी कथा कहता हूँ। ९. A मागहवर । १०. P°मालिरु तुहिणामरु । ११. AP वसिकय । १६.१. A मंदरसिंग; P मंदरे सिंगं । २. A रिद्धी मोत्तणं । ३. AP पियमित्तह । १७.१. A णिव; P णिउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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