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________________ परिचयात्मिका भूमिका किया। व्यापारोने कहा कि देवने जो फल दिये थे वे समाप्त हो गये हैं। चूंकि राजा अपनी मांगके लिए आग्रह करता रहा, तो ज्योतिषोने कहा कि राजा उन फलोंको पा सकता है यदि वह उसके साथ एक द्वीपके लिए चलता है। राजाने मंजूर कर लिया। वह व्यापारीके साय गया, उसने उसे चट्टानपर रखा और मार डाला । मृत्युके बाद सुभौम नरक गया । अरके शासनकालमें बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेवका छठा दल उत्पन्न हुआ। उनके नाम थे नन्दीसेन, पुण्डरीक और निशुम्भ । विस्तारके लिए तालिका देखिए । LXVII- मल्लिकी जीवनीके लिए तालिका देखिए। इनके शासनकालमें नौवें चक्रवर्ती पद्म हुए। विस्तृत जीवनीके लिए तालिका देखिए। यह मल्लिनाथके शासनकाल में हुआ कि बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेवका सातवाँ दल उत्पन्न हुआ। जिनके नाम हैं नन्दिमित्र, दत्त और बलि । विस्तारके लिए तालिका देखिए। परिशिष्ट जैनपुराणोंमें त्रेसठ शलाका पुरुषोंकी जीवनियोंके परम्परागत विस्तारमें जो एकरूपता दे दी गयी है, और विमलसूरिने अपने 'पउमचरिउ'में जो संकेत दिया है (पृ. ११ पर उद्धृत है ) ने मुझे यह विचार दिया कि मैं सुविधजनक शीर्ष कोंके रूपमें सभीकी मुख्य बातोंको अंकित कर दूं। इसलिए मैं इस जिल्दमें पांच तालिकाएं दे रहा हैं। तालिका एकमें, दिगम्बरोंकी परम्पराके अनुसार तीर्थंकरोंको प्रतिमाओं के चिह्नोंको दिया गया है । मैंने यह तालिका, श्री जी. एच. खरेकी मराठी पुस्तकसे जो बहुत मूल्यवान् है, ली है, इसलिए कि मेरी तालिकामें जानकारी है, वह गुण भद्र और पुष्पदन्तके उस जानकारीसे मिलनी चाहिए, जो उन्होंने अपने पुराणोंमें दी है, इसके लिए मैंने श्री खरेको तालिकामें थोड़ा फेर-बदल किया है। दूसरी तालिका, तीर्थकरोंके पूर्वजन्म, जन्मस्थान आदिका विवरण देती है। तीसरी तालिका में विभिन्न तीर्थंकरों के गणधरों की सूची है। चौथीमें चक्रवर्तियों के बारेमें सूचनाएं हैं। पाँचवीं तालिकामें बलदेवों, वासुदेवों, प्रतिवासुदेवोके बारे में जानकारी है। दरअसल मेरी जानकारीका स्रोत जिनसेनका आदिपुराण, गुणभद्रका उत्तरपुराण और पुष्पदन्तका महापुराण है। ये रचनाएं, मैं आशा करता हूँ कि दिगम्बर परम्पराका प्रतिनिधित्व करनेवाले सर्वोत्तम स्रोतोंमें से एक हैं, यदि ते सर्वोत्तम नहीं हैं तो एक या दो स्थानोंपर मैंने श्वेताम्बर परम्पराका उपयोग किया है, क्योंकि उनकी जानकारी देने में महापुराण समर्थ नहीं था या फिर मैं उसमें सामग्री ढूँढ़ने में समर्थ नहीं हो सका। मैं पाठकों के प्रति अत्यन्त कृतज्ञ होऊंगा यदि वे अनुपयुक्तताओं और कमियोंको ध्यानमें ला सके, मैं धन्यवादके साथ उनपर विचार करूँगा। नोरोजी वाडिया कालेज पूना अगस्त १६४० -पी. एल. वैद्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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