SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 399
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५२ महापुराण [ ५९. १४.१ इय भणिवि सयडंगु अणेण पमेल्लियउं उरयलु वइरिहि विउलु वियरिवि घल्लियउं । दो वि पंचचालीसधणुण्णयदेहधेर सुहं दहलक्खइं वरिसह थिय मुंजंत धर । ते हलहरहरिराणा मंगलभासिणिइ वीर बे वि आलिंगिय विजयविलासिणिइ । खयकाले मुसुमूरिउ पुरिससीहु गहिरि रउरवि रणरवि णिव डिउ सत्तममहि विवरि । ५ भाइपेउ सक्कारिवि सीहसेणतणउ धम्महु सरणु पइटुउ रामु सुदंसणउ। . छट्ठमउववासहिं दसमदुवालसहि। परवसलद्धाहारहिं विलवणणीरसहिं। रुक्खमूलवहि सयणहिं रवियरतावणहिं कम्मकंदु णिल्लूरिवि मुणिगुणभावणहिं । मुवणत्तयसिहरग्गहु मोक्खहु णिक्कलहु णिक्कसायणीरायहु गउ सो णिकलहु । मुणिगणिंदु आहासइ गोत्तमु विप्पसुउ फणिकिणरविजाहरगणगंधवथुउ। घत्ता-मागहणिव मण्णहि पुणु आयण्णहि चरिउं चक्कणेयारहं ।। संगामसमत्थहं तइयचउत्थहं मघवंसणाइकुमारहं ॥१४॥ पडिवइरिइ हइ णिवडिइ तमतमधरणियलि गिद्धखद्धमणुअंतइ वित्तइ भडतुमुलि । यह कहकर नारायणने चक्र चला दिया, तथा शत्रुके विशाल उरतलको भेदकर डाल दिया। पैंतालीस धनुष ऊँचे शरीर धारण करनेवाले वे दोनों ही ( नारायण और बलभद्र ) सुखपूर्वक दस लाख वर्षों तक धरतीका भोग करते रहे। वे दोनों ही बलभद्र और नारायण राजा मंगल-भाषिणी (सरस्वती) तथा विजयविलासिनी (विजयलक्ष्मी ) के द्वारा आलिंगित थे। क्षयकालके द्वारा मसला गया पुरुषसिंह गम्भीर भयंकर तथा युद्धके कोलाहलसे परिपूर्ण सातवें नरकके बिलमें गया। सिंहसेनके पुत्र ( बलभद्र ) ने भाईके शवका संस्कार कर राम सुदर्शन ( बलभद्र ) धर्मनाथकी शरणमें चले गये। छह, आठ, दस और बारह उपवासों, नमक रहित दूसरोंके द्वारा दिये गये आहारों, वृक्षोंके मूल पथपर शयनों, सूर्यकिरणोंके तपनों और मुनिगणकी भावनाओंके द्वारा कर्मरूपी अंकुरको नष्ट कर वह भुवनत्रयके शिखरके अग्रभागमें स्थित, निष्पाप, कषाय और रागसे रहित और शरीर रहित मोक्षके लिए चले गये। मुनिगणनाथ विप्र, पुत्र, नाग, किन्नर, विद्याधरगण और गन्धर्वोके द्वारा संस्तुत गौतम कहते हैं । घत्ता-“हे मगधराजा, तुम संग्राममें समर्थ तीसरे और चौथे चक्रके स्वामी मघवा और सनत् कुमारके चरितको सुनो और फिर विश्वास करो" ||१४|| प्रतिशत्रु (प्रतिनारायण मधुक्रोड़) के मारे जाने और तमतमप्रभा धरणीतलमें पतन होनेपर, जिसमें गिद्धोंके द्वारा मनुष्यको आँतें खायी गयी हैं, ऐसी भटभिड़न्त समाप्त होनेपर, भयंकर १४. १. A °देहवर । २. A सुहदह । ३. A°हरिणामि । ४. A रणयविणिवडिउ । ५. A भाइदेहु । ६. A णिक्कसाउ णोराउ सुदंसणु णिच्चलहु । ७. A गणिमुणिंदु । ८. AP°विज्जाहरवरं । ९. P°गंधथु । १०. P मघवासणईकुमारहं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy