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________________ ३३० महापुराण [ ५८. १६.४तहिं दिट्ठउ तेण महाबलेण देवेण भग्वजणवच्छलेण । बद्धउ सणेहु कीलाविसालु सहवासें दोहिं मि गलिउ कालु । तहिं कालि सहिवि णाणाकिलेसु परिभमिवि चंडसासणु भवेसु । इह भारहि कासीणामदेसि वाणरसिपुरि वरि घरणिवेसि । पुहईसरु तहिं णामें विलासु गुणवइणामें महएवि तासु । एयह दोहं मि लक्खणणिउत्तु महुँसूयणु णामें जाउ पुत्तु । घत्ता-रणि मिलियहं परमंडलियहं भुयबलु पबलु विजित्तउं ।। तें सुहयरु रुप्पयगिरिवरु धरिवि महीयलु भुत्तउं ॥१६॥ जहिं वरिसह लक्खई णिट्ठियाई जहिं वरिससयाई जि संठियाई । तहु भुजंतहु लच्छीविलासु तहिं अवसरि सुणि अवर वि पयासु । दारावइपुरि णं दससयक्खु सोमप्पहु पहु णवपंउमचक्खु । तहु जयवइ अवर वि अस्थि बीय लहुई पणइणि णामेण सीय । कालेण मुवणि किर को ण गसिउ सुरवरु सहसारविमर्माणल्हसिउ । पदमाइ महाबल पुत्त जणि बीयइ जो चिरु वसुसेणु भणिउ । सुप्पहु पुरिसुत्तमु णामधारि ते बेण्णि वि हलहरदाणवारि । ते बेण्णि वि पंडुरकसणवण्ण ते बेण्णि वि उण्णयपुण्णधण्ण । फलस्वरूप वह मान्य सामग्रीसे युक्त सहस्रार स्वर्गमें उत्पन्न हुआ। वहाँ उसे भव्यजनोंके लिए वत्सल महाबल देवने देखा। उसका स्नेह हो गया। इस प्रकार साथ-साथ रहते हुए क्रीड़ासे विशाल उनका समय बीत गया। उसी समय नाना क्लेशोंको सहन कर और जन्म-जन्मान्तरोंमें भ्रमण कर चण्डशासन राजा इस भारतके काशी नामक देशके, जिसमें सुन्दर घरोंकी रचना है, ऐसे वाराणसी नगरमें विलास नामका राजा था और उसकी गुणवती नामकी पत्नी थी। इन दोनोंके लक्षणोंसे परिपूर्ण मधुसूदन नामका पुत्र हुआ। पत्ता-युद्ध में आये हुए शत्रुराजाओंके प्रबल भुजबलको उसने जीत लिया। उसने शुभकर विजया गिरिवरको अपने अधीन कर धरतीतलका भोग किया ॥१६॥ जहां लाखों वर्ष ऐसे बीत जाते हैं कि जैसे सैकड़ों वर्ष बीते हों। वहां उसके लक्ष्मीविलासका भोग करते हुए उस अवसरपर दूसरा प्रकाश ( महिमा या प्रसंग ) सुनिए। द्वारावती नगरीमें नवकमलके समान आंखोंवाला सोमप्रभ नामका राजा था जो मानो इन्द्र था। उसकी जयावती और दूसरी छोटी सीता नामको प्रणयिनी थी। इस संसारमें समयके द्वारा कोन नहीं ग्रस्त होता। वह सुरवर सहस्रार विमानसे च्युत होकर पहली रानी ( जयावती) से महाबल नामका पुत्र हुआ। दूसरीसे जो वसुषेण नामका राजा था, वह सुप्रभ नामका धारी पुरुषोत्तम २. A °देसु । ३. A°पुरघरवरविसेसु; P पुरिधरवरविसे सु । ४. AP महसूयणु । ५. A तं सुहयरु । १७. १. AP तहिं । २. AP अवरु। ३. P णउ पउम। ४. AP विवाण । ५. P बीयउ । ६. AP पुण्णवण्ण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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