________________
३५६
महापुराण
[५७. ३१.१
३१ आइच्चाहु मोहमयमणु
हूयउ मेरुणामु तहु णंदणु। णियकुलसंतइवेल्लिवराहें
अमयवईहि तेण णरणाहें । हुउ सपुण्णविहवेणुदामें
धरणु चविवि सुउ मंदरु णामें। आयण्णह विरएप्पिणु अंजलि एयहं सयलह भणमि भवावलि । सीहसेणु करि सिरिहरु सुरवरु रस्सिबेउ रवितेउ वरामरु । वज्जाउहु अहमिदु पियारउ । संजयंतु दय करउ भडारउ । महुर रामदत्त वि जाणिज्जइ भक्खराहु पुणु देव भणिज्जा। सिरिहर पुणु वसुसमदिवि अणिमिसु रयणमाल अञ्चुयसुरु सहरिसु । पुणु विजेयंकु वि आइचाहउ जाउ मेरु पुणु मुणिगणणाहउ । वारुणि छणविहु वेलियप्पहु जसहर काविट्ठइ रूयप्पहु । रयणाउहु अक्षुयउ विहीसणु सकरवसुमइणारउ भीसगु। सिरिधामउ सुई बंभणिवासउ णिउ जयंतु फणिवइविवरासउ । पुणु मंदरगुणिगणसंजुत्तर सिरिभूइ वि फणि चमरि पवुत्तउ । घत्ता-कुक्कुडफणि चोत्थयणरयरुहु अजयरु पंकप्पहदुहिउ ।।
समरुन सत्तमपुहविभउ अहि पुणु सर्यलदुक्खगहिउ ॥३१॥
१५
मोहमदका मर्दन करनेवाला दिवाकर नामका देव उसका मेरु नामका पुत्र हुआ। और वह धरणेन्द्र च्युत होकर अमृतवती रानीसे, अपनी कुलसन्ततिरूपी लताके श्रेष्ठ वर तथा सम्पूर्ण वैभवसे उद्दाम उस राजाका मन्दर नामका पुत्र हुआ। (आप लोग ) अंजलि जोड़कर इन सबकी भवावलिको सुनिए । सिंहसेन हाथी, श्रीधर सुरवर, रश्मिवेग अर्कप्रभवदेव (रवितेज), वज्रायुध सर्वार्थसिद्धि में प्यारा अहमेन्द्र और संजयन्त आदरणीय ( गणधर ) दया करें। मधुराको रामदत्ता जाना जाये, फिर उसे भास्कर देव कहा जाता है, फिर श्रीधरा, फिर आठवें स्वर्गमें देव, रत्नमाला सहस्रार स्वर्गमें अच्युतदेव, विजयसे युक्त वीतभय और आदित्यप्रभ देव, तथा मेरु नामका गणधरोंका स्वामी हुआ। वारुणीका जीव, पूर्णचन्द्र वैडूर्यदेव यशोधरा, कापिष्ठ स्वर्गमें रुचकप्रभ रत्नायुध अच्युत विभीषण, दूसरी शर्करा भूमिका भीषण नारकी, श्रीधर्मा, ब्रह्मस्वर्गका देव, जयन्त, विवरोंमें आश्रित रहनेवाला धरणेन्द्र, फिर गुणियोंके गणोंसे संयुक्त मन्दर गणधर हुआ। श्रीभूति भी (सत्यघोष) सर्प चमर कहा गया।
घत्ता-कुक्कुट सर्प, चौथे नरकका नारकी, अजगर, पंकप्रभानरकका नारकी, शवर, सातवें नरकका नारको, साप, फिर समस्त दुःखोंको ग्रहण करनेवाला ॥३१॥
३१. १. AP अणमिसु । २. A विजयंतु वि । ३. A वेरुडिय । ४. A भूयप्पह । ५. AP सुरु । ६. A
मंदरमणिगण ; P मंदरि मुणिगण । ७. A चउत्थइ णरह तुहु । ८. A सम्वदुक्ख ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org