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________________ ३१४ महापुराण [५७. २८. १३घत्ता-वज्जाउहु सव्वत्थहु चविवि संजयंतु जिणतवि णिरउ ।। तुहं हुउ जयंतु बंभाउ चुउ रिसि णियाणसल्लेण मुउ ॥२८॥ २९ जायराउ जाओ सि भयंकर इयरु वि पाउ मुणिंदखयंकरु । अहमणिबद्धाउसु अहगारउ अहि हूयउ अंतिममहिणारउ । पुणु वालुयपहि वालु णिमण्णउ दुक्खपरंपराइ अहण्ण । तसथावरतिरिक्खभवंजालइ णिवडिउ हिंडमाणु गयकालइ । पविउलअइरावइ णइतीरइ भूयरमणि काणणि गंभीरइ । गोसिंगें घरिणिहि संखिणियहि संखुर्भेउ समुहसंखिणियहि । तावसेण संजणियउ तावसु पंचयासणु सहइ सतामसु । दिव्वतिलेयपुरि खेयरराणउ जोइवि जंतउ सकसमाणउ । णाम सुमालि णिबंध णिबद्धत अण्णाणे णियतवहलु लद्धउ । खगधरणीहरि उत्तरसेणिहि णहयलवल्लहपुरि सुहजोणिहि । विजदाङ खगु पिय विज्जुप्पंह मुहससियरधवलियदसदिसिवह । ताहं बिहिं मि हियइच्छियरूवउ हरिणसिंगु मुउ सुउ संभूयः । विज्जदाढ णामें दढयरमुउ - जगदूयाणुरूउ भडसंथुउ । घत्ता-इहु भाइ तुहारउ गरुययरु मेरुधीरु परिचत्तभउ ।। एएं जम्मंतरवइरिइण हउ परमेसरु मोक्खगउ ॥२९॥ घत्ता-वज्रायुध सर्वार्थसिद्धिसे च्युत होकर जिनतपमें निरत संजयन्त हुआ। और ब्रह्म स्वर्गसे च्युत होकर तुम निदान शल्यसे मरकर जयन्त हुए ॥२८॥ २९ मुनिका घात करनेवाला दूसरा भी भयंकर नागराज हुआ, पापकर्मसे आयु बाँधनेवाला, पाप करनेवाला नाग ( सत्यघोष ) सातवें नरकमें उत्पन्न हुआ। फिर दुःख परम्परासे विदारित वह मूर्ख बालुकाप्रभ नरकमें निमग्न हुआ। त्रस, स्थावर और तिर्यंचोंकी जन्मपरम्पराके जाल में पड़ा हुआ वह घूमता रहा। समय बीतनेपर विशाल ऐरावती नदोके किनारे भूतरमण नामक गम्भीर जंगलमें गोशृंग तपस्वीकी भाग्यहीन शंखिका पत्नीसे मृगशंख नामका तपस्वी हुआ। सतामस वह पंचाग्नि तप सहन करता है। दिव्य तिलकपुरमें इन्द्रके समान जाते हुए सुमालि नामक विद्याधरको देखकर उसने निदान बांधा और उस अज्ञानीने अपने तपका फल पा लिया। विजयार्ध पर्वतकी सुखयोनी उत्तर श्रेणी में विद्युदंष्ट्र विद्याधर और उसकी प्रिया विद्युत्प्रभा थी, जो अपने मुखरूपी चन्द्रमासे दसों दिशापथ धवलित करती थी। वह मृगशृंग मरकर उन दोनोंसे मनचाहे रूपवाला पुत्र हुआ। विद्युदंष्ट्र नामका दृढ़तर बाहुओंवाला, योद्धाओंके द्वारा संस्तुत और यमदूतके समान पत्ता-यह महान मेरुके समान धीर और परित्यक्त-भय तुम्हारा भाई, पूर्वजन्मके शत्रु इसके द्वारा आहत होकर परमेश्वर होकर मोक्ष गया है ।।२९।। २९. १. A अहमु । २. P वालय । ३. A भयजालइ । ४. A हरिणसिंगु हूय उ तवसिणियहि; P संखु व भवसमुद्दसंखिणियहि । ५. A पुरखेयर । ६. A वज्जदाढु । ७. A विज्जप्पह । ८. P विज्जुदाढु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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