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________________ २९४ महापुराण [५७. ३.४जेण वएण मोक्खु पाविजइ ते संसारु केव मग्गिज्जइ । मोहें मोहिउ लोउ ण याणइ काणणि कायोणंतिय वीणइ । सवरल्लउ किं मोत्तिउं बुज्झइ मिच्छाइट्ठिहि दिट्ठि ण सुज्झइ। आहिंडंसिरहपंचाणणि तावेकहिं दिणि भीसणकाणणि । णिजियराएं वज्जियकाएं संजयंतु थिउ पडिमाजोएं। घत्ता-मुणिमारउ धीरउ दुहरिसु दूसहु गुणसंणिहियसरु॥ णियभामइ सामइ रामियउ णं रइरामइ कुसुमसरु ॥३॥ ४ णहयलि विजुदाढु विजाहरु विहरइ असिवरु वसुणंदयकरु । सुरहरु रिसिहि उवरि ण पयट्टा दुजणमणु व णे जाव विसदृइ । ताव तेण अवलोइउं महियलु दिट्ठउ मुणिवरु मेरु व णिञ्चलु । सुमरिवि पुत्ववइरु मुइ ढोइउ विज्जासामत्थेणुच्चाइउ । आणिउ तुंगसाहिसंघायइ भारहवरिसपुत्वदिसिभायइ । हरिवइ करिवइ चामीयरवइ कुसुमवइ वि चंडवेयाणइ । एयेउ मिलियउ जहिं तहिं पेल्लिउ पंचमहासरिसंगमि घल्लिउ । देसु असेसु तेण संचालिउ अच्छइ एत्थु एक्कु मलमइलिउ । णग्गउ णिग्घिणु वसणोवायउ तुम्हई रक्खसु भक्खहुँ आयउ। मरकर पाताल लोकमें विषधरराज होता है। जिस व्रतसे मोक्ष पाया जा सकता है, उससे संसार क्यों मांगा जाता है ? इस बातको मोहसे मोहित जन नहीं जानता। जंगलमें भील गुंजाकी प्रार्थना करता है, क्या वह मोतीको समझता है ? मिथ्यादृष्टिके लिए दृष्टि नहीं दिखाई देती। जिसमें सरभ और सिंह भ्रमण करते हैं, ऐसे भयंकर जंगल में एक दिन, जिसमें रागको जीत लिया गया है और शरीरका त्याग कर दिया गया है ऐसे प्रतिमायोगमें संजयन्त मुनि स्थित थे। घत्ता-मुनिको मारनेवाला धोर, दुदर्शनीय, असत्य डोरीपर तीर चढ़ाये हुए, अपनी पत्नी श्यामासे इस प्रकार रमण करता हुआ मानो काम रतिके साथ रमण कर रहा हो ॥३॥ जिसके हाथमें वसुनन्दक नामकी श्रेष्ठ तलवार है, ऐसा विद्युर्दष्ट्र विद्याधर आकाशतलमें विहार कर रहा था। उसका देव-विमान मुनिके ऊपर नहीं जा सका। दुर्जनके मनकी तरह जबतक उनका विमान विघटित नहीं हुआ, तबतक उसने धरतीतलको देखा, उसने मेरुके समान, मुनिवरको अचल देखा । अपने पूर्व वेरको याद कर उसने विद्याकी सामर्थ्यसे उसे उठा लिया तथा बाहुओंपर धारण कर लिया और उसे जो ऊंचे-ऊंचे वृक्षोंसे आच्छादित है, भारतवर्ष के ऐसे पूर्वदिशा भागमें जहाँ हरिवती, करीवती, चामीकरवती, कुसुमवती और चण्डवेगा नदियां मिलती है, वहां फेंक दिया और इस प्रकार पांच महानदियोंके संगमपर डाल दिया तथा अशेष देशमें यह बात फैला दी कि यहां एक मलसे मैला निर्दय दुःखजनक नंगा राक्षस तुम लोगोंको खानेके लिए २. A कायाणणिय । ३. A मिच्छाहिहिहि । ४. P आहिंडंति सरह । ४. १. A विज्जदाढु । २. AP जाव ण । ३. A °वरिसि पुव । ४. A कुसुमडई व पाणइ; P कुसुमवइ वि चंडवियाणइ । ५. A जहिं एयउ मिलियउ तहिं पेल्लिउ । ६. AP एक्कु एत्थु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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