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________________ - ५४. १३. ८ ] दंत मुसलजुयले पेल्ला मि रायत्तणु महुं पुणु संकरिसणु अणु राउ जइ होइ कुसुंभइ अणु राज अहरहु तंबोलें हरं किं घेपमि अण्णें राएं महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता – हरिकरिभडलोहियकयछडइ दूय ण वड्डिमँ बोल्लमि ॥ रणरंग दुविट्ठहु अट्ठियई पिट्टु करेपिणु घल्ल मिं ||१२|| १३ दुवई - एम भणंतु चलिउ हयगय रहणरभरणेमियधरयलो || हयसंगामतूर बहिरिय दिसबहलुच्छ लिय कलयलो || दसदिसु खंधावारुण माइउ । णिग्गय सज्जनहरिबल तार्वाहि । सहरि गिरिंधीर सुमहाभड । कायते यणिज्जियखयसि हिसिह । दंतिदंत णिम् मूलणखमभुय । सीरसरासनसुरपहरणकर | हरिखुरखयधूलीरछाइ fre दारावइणियडउ जावहिं सकरि सगरुडविंध रहसुब्भड गय मलधवलकमलकज्जलणिह खयरणरामर से वियपयजुय रयणमालकोत्थु जलयरधर एम हत्थि हउं तहु रणि दावमि । अह व करइ पियबं सुदरिसणु । अण्णु राउ संझापारंभइ । to रा छिंदम करवालें । ता पडिजंपिडं तारयेराएं । • Jain Education International होकर यह नहीं कहता कि में वशमें हो जाऊँगा, हाथमें धनुष लेकर हाथीके ऊपर पहुँचूँगा । दाँतके समान मूसलयुगलसे उसे प्रेरित करूंगा, इस प्रकार में उसे युद्धमें हाथी दिखाऊँगा । राज्यत्व तो केवल मेरा बलभद्र करेगा, अथवा फिर सुदर्शनीय प्रिय ब्रह्म करेगा । यदि कुसुम्भ वृक्षमें दूसरा राग ( रंग ) होता है, यदि सन्ध्याके प्रारम्भ में दूसरा राग होता है, यदि पान खानेसे अधरोंपर दूसरा राग होता है; इसी प्रकार यदि मेरा अन्य राग ( राजा ) होता है तो में तलवारसे उसे काट दूंगा । क्या मैं दूसरे राजाके द्वारा ग्रहण किया जाऊँगा ?” तब तारक राजा कहता है २६५ धत्ता- -"हे दूत, मैं बड़ी बात तो नहीं करता, परन्तु जिसमें घोड़ा, हाथी और योद्धाओंके द्वारा लाल-लाल छटा की गयी है, ऐसे रणरंगमें में द्विपृष्ठकी हड्डियोंको पीसकर फेंक दूंगा" ||१२|| ४. APपिभु । ५. AP छष्णमि । ६. A तारायराएं । ७. AP वड्डिम् | १३. १. APवि । २. A समहाभड | ३४ १० १३. इस प्रकार कहता हुआ जिसने घोड़ा, हाथी, रथ और मनुष्योंके भारसे धरतीको नमित कर दिया है, ऐसा वह चला। युद्धके नगाड़ोंके आहत होनेपर दिशाओंको अत्यन्त बहिरा बनाता हुआ कलकल शब्द होने लगा । घोड़ों के खुरोंसे आहत धूलरजसे आच्छादित सैन्य दसों दिशाओं में कहीं भी नहीं समा सका। जबतक वह द्वारावतीके निकट ठहरता है, तबतक सज्जन नारायणका सैन्य बाहर निकला, हाथियों, गरुड़ध्वज चिह्नोंके साथ और हर्षसे उद्भट; और अश्वोंके साथ । गिरीन्द्रके समान धीर मलरहित धवल कमल और काजल के समान, शरीरकी कान्तिसे प्रलयाग्निकी ज्वालाओं को जोतनेवाले, जिनके पैर विद्याधर, नर और देवों द्वारा पूजित हैं, जो महागजों के दांतोंको उखाड़ने में सक्षम बाहुओंवाले हैं; जो रत्नमाला, कौस्तुभ और शंखको धारण करनेवाले ५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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