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________________ -५४.११.३] महाकवि पुष्पदन्त विरचित तो दिण्णु दूर कल्लाणभूउ। दारावईसु भीमारिभीसु। जाएवि तेण मउलियकरेण । कुलकुमुयचंदु दिट्ठउ उविंदु । दूएण उत्तु सुणु मंतसुत्तु । मुयबलविसालु कुलसामिसालु। संभरहि देउ रायाहिराउ। गिरितुंगमाणु ताराहिहाणु । भडवरवरिट्ठ तुहुं भो दुविठ्ठ। मेल्लिवि दुआलि मा करहि रालि। तुहईपिएण सह सामिएण। खयरिंद जासु वच्चंति पासु। इच्छंति सेव असितसिय देव । तहु कवणु मल्लु मुइ रोससल्लु । ढोइवि करिंदु पवणहि णरिंदु। घत्ता-ता भणिउं दुविढे रुट्ठएण सामि महारउ हलहरु ॥ अण्णहु सामण्णहु माणुसहु हउं होसमि किं किंकरु ॥१०॥ ११ दुवई-जो मई भणइ भिच्च' परु दुम्मइ दूयय तासु सीसयं ॥ तोडमि रणि तड त्ति मणिकुंडलमंडियगंडएसयं ।। कायकतिओहामियससहरु तहिं अवसरि भासइ जिम्वाहरु । हैं नहीं तो मारे जाते हैं।" तब उसने कल्याणभूति नामक दूतको भीम शत्रुओंके लिए भयंकर द्वारावतीके राजाके पास भेजा। उसने जाकर और अपने दोनों हाथ जोड़कर अपने कुलरूपी कुमुदके चन्द्र उपेन्द्रसे भेंट की। दूत बोला, "आप मन्त्रसूत्र सुनिए । हे देव, बाहुबलसे विशाल कुलके स्वामीश्रेष्ठ गिरिके समान उन्नतवान तारक नामके राजाधिराजकी आप याद करें और योद्धावरोंमें श्रेष्ठ हे द्विपृष्ठ, तुम भी खोटी चाल छोड़कर पृथ्वीके प्रिय स्वामीके साथ झगड़ा मत करो। विद्याधरराजा, जिसका सामीप्य चाहते हैं, जिसकी तलवारसे त्रस्त देव उसकी सेवाकी इच्छा करते हैं, उसका प्रतिमल्ल कौन है ? तुम क्रोधकी शल्य छोड़ दो। करिवर ले जाकर तुम राजाको प्रणाम करो।" __घत्ता-तब द्विपृष्ठने क्रुद्ध होते हुए कहा, "मेरे स्वामी बलभद्र हैं। क्या मैं किसी दूसरे सामान्य मनुष्यका अनुचर हो सकता हूँ? ॥१०॥ जो मुझे भृत्य कहता है, हे दूत, वह मेरा दुश्मन है; मैं युद्ध में मणिकुण्डलोंसे मण्डितगण्ड देशवाले उसके सिरको तड़ करके तोड़ डालूंगा।" अपनी शरीरकान्तिसे चन्द्रमाको पराजित करनेवाले ४. A ता । ५. A सुणि । ६. AP मेल्लहि । ७ P राडि । ११. १. AP भिच्चु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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