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________________ - ५३. ४. १३ ] हारदार सोहमाणु अट्ठअट्ठपक्सासु चोत्थभूयलंत लक्खु - सोलह सहसहं गय वरिसहं एक्कसु मुंजइ || जो सो सुरवरु बुहियवरं किं णउ रंजइ ॥३॥ ४ घन्ता महाकवि पुष्पदन्त विरचित लेसमासजीवियम्मि जक्खणाहु भासुरेण जंबुदीवि भाणुभासि दोक्खलक्खलोट्टणम्म अत्थि दव्वपुज्जराउ तस्स पत्ति कामवित्ति ता होईदिदियारि जाहि देव सोक्खजुत्ति णिम्मियं पुरं वरेहिं कंजछण्णवावियाहिं फुलैर्गुछवच्छ तीरिणीतला एहिं हटिंचरेहिं अट्ठअद्धहत्थमाणु । पुण्णचंद संणिहासु | सद्दजायकामसोक्खु । दिव्व पुंगमे थियम्मि । बोल्लिओ सुरेसरेण । भारहम्मि अंगदेसि । चंपणापट्टणम | सत्तुसीसदिण्णपाठ । वल्लहा जयावइ त्ति । अंगओ अहम्महारि । ता धणाहिवेण क्षत्ति । मोत्तिएहिं कब्बुरेहि | दीहियाहिं खाइयाहि । कूवएहिं कच्छएहिं । चित्तदारभायएहिं | गामगोहदुच्चरेहिं | Jain Education International २४५ १५ शुभ्र तेजवाला था । हार-डोरसे शोभित चार हाथ प्रमाण शरीर, आठ-आठ पक्षमें श्वास लेनेवाला और पूर्णचन्द्रके समान मुखवाला। चौथी नरकभूमिके अन्त तक देखनेवाला ( अवधिज्ञानसे ); उसे शब्दमात्र से कामसुख मिल जाता था । १० घत्ता - जो, जब सोलह हजार वर्ष निकल जाते तो एक बार भोजन करता, वह देववर पण्डितोंके हृदयका रंजन क्यों नहीं करता ? ॥३॥ ४ जब दिव्यशरीरमें स्थित उसका छह माह जीवन शेष रह गया, तो भास्वर देवेन्द्रनाथने यक्षनाथसे कहा कि 'सूर्यसे प्रकाशित जम्बूद्वीपके भारतमें अंगदेशके लाखों दुःखोंको नष्ट करनेवाले चम्पा नामक नगर में शत्रुओंके सिरपर पैर रखनेवाला वसुपूज्य नामका राजा है, उसकी पत्नी ( प्रिया ) जयावती कामवृत्ति है । उन दोनोंके इन्द्रियोंका शत्रु और अधर्मका हरण करनेवाला पुत्र होगा । इसलिए सुखयुक्तिवाले हे देव, तुम जाओ ।' तब कुबेरने शीघ्र जाकर श्रेष्ठ चित्र-विचित्र मोतियोंसे नगरकी रचना की । कमलोंसे आच्छादित वापियों, लम्बी-लम्बी खाइयों, फूलोंके गुच्छेवाले वृक्षों, कूपों, कच्छों (कछारों), नदियों, तालाबों, चित्रित द्वारभागों, बाजारों, द्यूतगृहों, चौराहों, ग्राम्य For Private & Personal Use Only २. Paar | ४. १. जंबुदीवभाणुभासि । २. A होहि इंदियारि; P होहिदिदियारि । ३. A देहि सोक्ख । ४. AP फुलगोच्छ । www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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