________________
२४३
-५३. २. १३ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित कुलबलजाईसामयं
मोत्तुं जम्मं सामयं । काउं देहं खामयं
जिह लद्धं मोक्खामयं । घत्ता-तिह हउं भासमि सुणि सेणिय किं सिरिगावें ।।
जिणगुणचिंतइ चंडालु वि मुच्चइ पावें ॥ १॥
पुक्खरवरदीवद्धए
मणुउत्तरगिरिरुद्धए। तडउग्गयसुरदारुणो
इंददिसासियमेरुणो। पुष्वविदेहे जणरुई
पीणियखगलसंतई। तत्थ वारिमंथरगई
सीया णाम महाणई । पायवसुरहिसमीरए
तीए दाहिणतीरए। संतोसियणरवरमई
वरदेसो वच्छावई। घरसिरकयणहसाइयं उच्छवपडहणिणाइयं । धुयधयमालाराइयं
रयणउरं रयणाइयं । तहिं राओ पउमुत्तरो
जो सीलेण जगुत्तरो। देवी तस्स मयच्छिया
णामेणं धणलच्छिया। दोण्हं जणियाणंगओ दीहो कालो णिग्गओ। तलतमालतालीघणे
आसीणो पुरउववणे । सत्तुमित्तसमचित्तओ
अरुहो तित्थपवत्तओ। समझ लिया है, ऐसे उन परमात्माको मैं नमस्कार करता हूँ। उनकी महाकथाको मैं कहता हूं कि किस प्रकार उन्होंने तप स्वीकार किया। किस प्रकार कुल-बल-जाति और लक्ष्मीके मद और व्याधिसहित जन्मको छोड़कर और शरीरको कृश बनाकर मोक्षरूपी अमृत उन्होंने प्राप्त किया।
घता- उस प्रकार मैं कहता हूँ, हे श्रेणिक ! लक्ष्मीके गर्वसे क्या, जिनके गुणोंका चिन्तन करनेसे चाण्डाल भी पापसे मुक्त होता है ॥१॥
मानुषोत्तर पवंतसे अवरुद्ध पुष्करार्ध द्वीप है। जिसके तटपर देवदारु वृक्ष उगे हुए हैं ऐसे पूर्वदिशामें आश्रित पूर्वमेरुके पूर्व विदेहमें लोगोंको अच्छी लगनेवाली, पक्षिकुलकी परम्पराको सन्तुष्ट करनेवाली, जलसे मन्द-मन्द बहनेवाली सीता नामकी नदी है। उसके वृक्षोंसे सुरभित पवनवाले, दक्षिण तीरपर नरश्रेष्ठोंकी मतिको सन्तुष्ट करनेवाला वत्सकावती देश है। उसमें रत्नपुर नामका नगर है, जो गहरूपी सिरोंसे आकाशका आस्वाद करनेवाला है, जिसमें उत्सव नगाड़ोंका शब्द हो रहा है, जो हिलती हुई पताकाओंसे शोभित है और रत्नोंसे विजटित है। उसमें पद्मोर नामका राजा था जो शीलमें विश्वमें श्रेष्ठ था। मृगके समान नेत्रवाली उसकी धनलक्ष्मी नामकी देवी थी। कामदेवको जाननेवाले उनका बहुत-सा समय बीत गया। तल, तमाल और ताली वृक्षोंसे सघन नगर-उपवनमें विराजमान, शत्रु और मित्रमें समान चित्त रखनेवाले तीर्थ२. १ A जणरई । २. A खगउडसंतई । ३. AP तेत्थु । ४. P तहिं मि राउ पउमुत्तरो।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org