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________________ २३८ महापुराण . [५२. २६. १ २६ दुवई-मणहरभद्दलक्खणायारहं णहयललग्गकुंभहं । दोचालीसलक्ख मायंगहं अरिकरिवरणिसुंभहं ।। तेत्तिय रह रणभरजोत्तियाउ पायालहु कोडिउ तेत्तियाउ। जलथलगयणंतरजंगमाहं जेवकोडिउ जाइतुरंगमाहं । जंभारिपीलुलीलागईउ महएविउ अट्ठ महासईउ। णिरु पीणपीवरुण्णयथणीहिं सोलह सहास सीमंतिणीहिं । सोलह सहास देसंतराह सोलह सहास णाडयवराहं। सोलह सहास धरि पत्थिवाह सोलह सहास खेडाहिवाहं । तह णव सहास मेच्छाहिवाहं पण्णास सहस दोणामुहाई। चठवीस सहस वरपट्टणाह सत्तेव सहस संवाहणाहं । छत्तीस सहस साहिय पुराह वसुसमसहास जक्खामराह । पञ्चंतणिवासहं णिवइ णयेई पण्णास णिलत्तई तिण्णि सयई। गिरितरुजलवाहिणिसंगमाई चउदह वणदुग्गई दुग्गमाई । गामहं कोडिउ अडदाल जासु किं अक्खमि संपय वप्प तासु । जा णाम सयंपह इट्ठणारि जा णहयरणाहहु हुइय मारि ।। घत्ता-तहि परमेसरिहि रइरससरिहि हरिणा हरिसरवण्णा ।। पहिलउ सिरिविजउ बीयउ विजउ तणय दोण्णि उप्पण्णा ॥२६।। १५ जो सुन्दर भद्रलक्षण धारण करनेवाले हैं, जिनके कुम्भस्थल आकाशतलसे लगते हैं, और जो शत्रुगजोंका नाश करनेवाले हैं, ऐसे दो लाख चालीस हजार हाथी उसके पास थे। उतने ही युद्धभारमें जोते हुए रथ थे। पैदल सैनिक भी उतने ही करोड़ थे। जल, थल और आकाशमें चलनेवाले नौ करोड़ घोड़े थे। ऐरावतकी चालकी तरह चलनेवाली आठ महासती देवियां थीं। अत्यन्त स्थूल और उन्नत स्तनोंवाली सोलह हजार स्त्रियाँ थीं। सोलह हजार देशान्तर, सोलह हजार नाटकवर, सोलह हजार गृह पार्थिव ? सोलह खेडाधिपति, नौ हजार म्लेच्छ राजा, पचास हजार द्रोणमुख, चौबीस हजार उत्तम पट्टन, सात हजार संवाहन, छत्तीस हजार और यक्ष अमरोंके आठ हजार नगर कहे गये हैं। तीन सौ पचास सोमान्त राजा उसके प्रति नत थे। गिरितरुओं और नदियोंसे युक्त चौदह दुर्गम वन दुर्ग थे। जिसके पास एक करोड़ अड़तालीस गांव थे, मैं अकिंचन कवि उसका क्या वर्णन करूं? जो उसकी स्वयंप्रभा नामको प्रिय पत्नी थो, वह विद्याधरोंके लिए मारी सिद्ध हुई। ___ पत्ता-रतिरूपी रसकी नदी उस परमेश्वरीसे हर्षसे सुन्दर हरि ( त्रिपृष्ठ ) को दो पुत्र उत्पन्न हुए-पहला श्रीविजय और दूसरा विजय ।।२६।। २६. १. A णहयरग्ग। २. A णव भणिय: जाई । ३. P णडणयवराहं । ४. AP तहो । ५. A णिवइ णियई । ६. A°संगमाहं । ७. दुग्गमाहं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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