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________________ २०९ -५१. १६. ११ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित पई णहयरणरणाहु पमाइवि पोयणपुरवइपुत्तहु जाइवि। सामण्णहु वियलियगुणणियरहु कण्णारयणु दिण्णु भूमियरहु । पत्ता-अह सो सामण्णु भणहुं ग जाइ खगाहिव ।। जें मारिउ सीहु चालिय सिल वसिकय णिव ।।१५।। तं णिसुणिवि णरणाहु विरुद्ध उ णं केसरि गयगंधविलुद्धउ । धगधगधगधगंतु चंचलसिहु घयधाराहिं सित्त णं हुयवहु । रत्तणेत्तरुइरावियदसदिसु पुप्फयंतु णं फणि आसीविसु । णं जै तिहुयणगिलणकयायरु परैसिरिहर असिवरपसरियकरु । चवइ सरोसु भिउडिर्भडभीसणु करतलप्पताडियरयणासणु । अजु जलणजडि मारिवि संगरि घिवमि कयंतवयणविवरंतरि । सहं जांवाएं देवि दिसाबलि मुक्खइ भग्गउ धवू पावउ कलि । तहिं अवसरि पालियनवसासणु। रायसहासहिं मग्गिउ पेसणु । ते णउ पेसई सइं संचल्लिउ पहु हरिमस्समंतिं'' बोल्लिउ । जो मयवइजीविउ उद्दालइ कोडिसिलायलु जो संचालइ। सो सामण्णु ण होइ निरुत्तउं तुम्हहुं अप्पणु जाहु ण जुत्तउं । छोड़कर तथा जाकर पोदनपुर नगरके राजाके अत्यन्त सामान्य, गुणसमूहसे रहित, पुत्रको मनुष्य होते हुए भी कन्यारत्न दे दिया।" पत्ता-अथवा उस सामान्यका हे राजन्, वर्णन नहीं किया जा सकता कि जिसने सिंहको मार डाला, शिलाको चला दिया और राजाको अपने वशमें कर लिया ।।१५।। ___ यह सुनकर नरनाथ ( अश्वग्रीव ) विरुद्ध हो उठा मानो हाथी की गन्धका लोभी सिंह हो, धक-धक-धक जलती हुई चंचल शिखावाली, घृत धाराओंसे सींची गयी मानो आग हो, लाल-लाल नेत्रोंको कान्तिसे दसों दिशाओंको रंजित करनेवाला आशीविष, पुष्पके समान दांतवाला मानो नाग हो, जो मानो त्रिभुवनको निगलने में आदर रखनेवाला, दूसरेकी श्रीका अपहरण करनेवाला, असिवरसे हाथ फैलाये हुए यम हो। वह क्रोधमें आकर भौंहोंसे भटोंके लिए भयंकर हाथके प्रहारसे सिंहासनको प्रताड़ित करनेवाला वह कहता है कि मैं आज युद्ध में ज्वलन जटीको मारकर, यमके मुखविवरके भीतर डाल दूंगा और दामादके साथ उसको दिशाबलि दूंगा। भूखसे नष्ट यम तृप्ति प्राप्त कर लेगा। उस अवसरपर नृपशासनका पालन करनेवाले उससे हजारों राजाओंने आज्ञा मांगी। परन्तु उसने नहीं भेजा, वह स्वयं चला । हरिश्मश्रु मन्त्रीने उससे कहा कि जो सिंहके जीवका नाश करता है, जो कोटिशिलाको चलाता है, वह निश्चय ही सामान्य व्यक्ति नहीं है। इसलिए तुम्हें स्वयं जाना उचित नहीं है। ६. AP पोयणपुरिवइ । ७. P omits ण । १६. १. AP रत्तणेत्तु । २. AP जमु । ३. A°सिरहर । ४. AP भि उडिभयं । ५. P मयणासणु । ६. AP कयंतदंतविवरंतरि । ७. AP जामाएं । ८. A धव; P धउ । ९. AP णिवसासणु । १०. AP पेसिय । ११. P हरिमंसुसुमंतिहिं बोलिउ; P गरिमस्ससुमंतिहिं बोलिउ । २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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