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________________ २०७ -५१. १४.८] महाकवि पुष्पदन्त विरचित तुडं पुरुसोत्तमु तुहुं धरणीहरु णिवडंतहं बंधहुं लग्गणतरु । तुहुँ इक्खाउसवरधयवडु तुह पडिमल्ल पत्थि तिहुवणि भडु । साहु साहु तुह सोहइ विक्कमु अण्णहु एहउ कासु परक्कमु । एम भणंतहं घोसगहीरइं कउ कलयलु दिण्णई जयतूरई। परिमलबहलई वण्णविचित्तई अमरहिं पंजलिकुसुमई पित्तई। चंडहिं भुयदंडहिं पडिपेल्लय पुणु सिल माहवेण तहिं घल्लिय । मालालंकिइ मउडि पसत्थइ कालभवित्ति णाइ रिउमत्थइ। घत्ता-खगमहिवइणाह वणु मेल्लिवि पडिआइय ॥ हरिबलसंजुत्त पोयणणयरु पराइय ।।१३।। १४ अहिवंदिय दहिअक्खयसेसह पुरि पइसंतहं ताह गरेसहं । मंदिरि मंदिरि मंगलकलयलु णञ्चइ कामिणि घुम्मइ मद्देलु । मंदिरि मंदिरि छडरंगावलि बज्झइ तोरणु चित्तधयावलि । मंदिरि मंदिरि कलस सउप्पल णिहिय वयणविलुलियपल्लवदल । ता तहिं जंपइ पुरणारीयणु सुहयालोयणपयडियघणथणु । का वि भणइ इहु राउ पयावइ एहु खगाहिउ रहणेउरवइ। का वि भणइ इ सो संकरिसणु हलहरु हलि अँकरंतु वि करिसणु । का वि भणइ इहु सो णारायणु जेण संयंपहाहि हित्तउं मणु । तुम इक्ष्वाकुकुलके श्रेष्ठ ध्वजपट हो, तुम्हारे समान प्रतिभट त्रिभुवनमें नहीं है । साधु-साधु, तुम्हें पराक्रम शोभा देता है। और दूसरे किसका ऐसा पराक्रम हो सकता है ?" इस प्रकार कहते हुए उनका कलकल शब्द होने लगा, गम्भीर घोषतूर्य बजा दिये गये। परिमलोंसे प्रचुर रंगबिरंगी कुसुमांजलियां देवों द्वारा छोड़ी गयीं। प्रचण्ड बाहुदण्डों द्वारा प्रेरित उस शिलाको माधव (त्रिपृष्ठने) वहीं इस प्रकार रख दिया, मानो मालासे अंकित मुकुट और प्रशस्त शत्रु मस्तकपर मानो कालभवितव्यता हो। घत्ता-विद्याधरों और मनुष्योंके राजा वन छोड़कर वापस आ गये और त्रिपृष्ठकी सेनासे संयुक्त वे पोदनपुर पहुंचे ।।१३।। दही, अक्षत और निर्माल्यसे नगर में प्रवेश करते हुए उन नरेशोंकी अभिवन्दना की गयी। घर-घर में मंगल कलकल होने लगता है। कामिनी नृत्य करती है। मृदंग बज उठता है। घर-घरमें षरंगावली होने लगती है, तोरण और रंगबिरंगी ध्वजमाला बांधी जाने लगती है। घर-घरमें, जिनके मुखपर पल्लवदल मदित हैं, ऐसे कमल सहित कलश रख दिये गये हैं। तब वहां, सुन्दरके अवलोकनमें जिसके सघन स्तन प्रकट हुए हैं, ऐसा पुरनारीजन कहता है। कोई कहती है कि यह राजा प्रजापति है। यह विद्याधर राजा रथनूपुरका स्वामी है, कोई कहती है, हे सखी, यह वह हलधर (बलभद्र) है जो कर्षण नहीं करते हुए भी हलधर (किसान) हैं । कोई कहती है कि यह वह २. A इक्खाकवंस; P इक्खाववंस । ३. A परिक्कमु । ४. °कियमउडपसत्थइ । १४. १. A पुरपयसंतह; P पुरि पयसंतहं । २. A मंदलु । ३. AP पहु। ४. AP अकरंतउ करिसणु । ५. P सयंपयाहि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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