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________________ ४९. १४. २ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित १३ / तां सद्विसत्तरह गणहर । तेरहसयई धरियपुव्वं गहं । दुई संजुत्तई सिक्खुहुँ । तेत्तिय भणु मणपज्जवणाणहं । केवलचक्खुणिहाणवतहूं । पंच विवाइहिं बहुणयभरिंयहं । संजमचारिणीहिं वरणारिहिं । दो लक्खई सावयहं पयासइ । माणमणिणीहि मणहारिहिं । सहुं संखाइ जिणिदें अक्खिय | बहिं वरिसहिं विरहियई ससोक्खई । महि विहरिवि अरहंत विहूइइ । लंबियकरयलु एक्क जि मासु । परिहरिवि अवरु वि संठिउ मुणिहिं सहासु ॥१३॥ १४ कुंथूपमुह पयणावियसुरवर रिसिहिं विणासियघोराणंगह अदालई जि सहासई भिक्खुहुँ छहसहास अवहीपॅरियाणहूं ते श्चिय पंचसयाहिय संतह एयारहसहास वैइकिरियह दुम्ह म्हमारिहिं एक्कु लक्खु वीसेव सहासई चलक्खई देसव्वअधारिहिं अमर असंख तिरिक्ख णिरिक्खिय एकवीस तर्हि वरिसहूं लक्खई सुरवइरइयइ जण सुहसूइइ घत्ता - गिरिसंमेयहु मेहलहि जि सोहि त जीवेपिणु कयतिहुयणहरि सह पहु सावणपुण्णवहि जणिहि जिणु चउरासीलक्खई वरिसहं । चंदि परिट्ठि गंपि धणिट्ठहि । Jain Education International १८३ ५ १३ जो सुरवरोंके द्वारा प्रणम्य हैं ऐसे कुंथु प्रमुख, उनके सत्तर गणधर थे, घोर कामदेवका नाश करनेवाले पूर्वांगोंको धारण करनेवाले तेरह सौ मुनि थे, अड़तालीस हजार दो सौ शिक्षक मुनि थे, अवधिज्ञानी छह हजार थे और इतने ही अर्थात् छह हजार मन:पर्ययज्ञानी थे, केवलज्ञानरूपी आँख से देखनेवाले केवलज्ञानी छह हजार पांच सौ थे । विक्रिया ऋद्धिको धारण करनेवाले ग्यारह हजार मुनि थे । पाँच हजार बहुनयधारक वादी मुनि थे । प्रगट दुर्मद कामदेवका नाश करनेवाली संयमधारण करनेवाली आर्यिकाएँ एक लाख बीस हजार थीं। दो लाख श्रावक थे । देशव्रत धारण करनेवाली मनुष्योंके द्वारा मान्य सुन्दर श्राविकाएँ चार लाख थीं । देव असंख्य थे और तिर्यंच संख्यात थे, ऐसा जिनेन्द्रने कथन किया है । दो वर्ष कम एक लाख इक्कीस वर्ष तक सुखपूर्वक, इन्द्रके द्वारा रचित जनके शुभ की सूचक अरहन्त की विभूति के साथ धरतीपर विचरण कर । । १० घत्ता - सम्मेदशिखरके कटिबन्धपर हाथ लम्बे कर एक माह के लिए जिस प्रकार वह, उसी प्रकार दूसरे एक हजार मुनि अपने शरीरका परित्याग कर प्रतिमायोग में स्थित हो गये || १३॥ For Private & Personal Use Only १४ त्रिभुवनको हर्ष उत्पन्न करनेवाले चौरासी लाख वर्ष तक जीवित रहकर, श्रेयांस जिन, श्रावण शुक्ला को लोगोंको आनन्द देनेवाली पूर्णिमाके दिन चन्द्रके धनिष्ठा नक्षत्र में स्थित होनेपर, १३. १. A अडदालसहास भिक्खुयाहं । २. A दुइसइसंजुत्तई । ३ AP परिमाणहं । ४. A केवलिचवखु । ५. A वैकिरियह; P विकिरियहं । ६. A धम्महं वम्मह । ७. AP संजमधारिणीहि । ८. A समक्खई । www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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