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________________ १८० ५ १० ५ जे कलसर ते किरे वम्महसर वम्महसरवरेहि जणु दारिउ जिणु सिसु मयणहु अज्जु वि संक करइ कामु धणुगुणकार बहुएं सेयंसेण णिउत्तउ आणिवि णयरु समप्पिड माय हि पण वेष्पिणु दुक्कियघणपवणहु काले जंतें वत्थुपैमा उ धत्ता एकवीसलक्खईं बालतें पुणु पुज्जिर पोलोमीकंर्ते रज्जु करंतहु कामरसद्दहं एहउ अवसरु जायउ जइयहुँ दिट्ठउ तंबिरपल्लवु चूयउ सो णं जालहिं जलइ णिरारिउ महापुराण - हेमच्छविहि भडारहु तासु अँसीइसरा सण म्हार विविणरामर । जणवण हियवइ जिणु धारिउ । तेण जि रइ थणजुयलु ण ढंकइ । पसरइ अच्छरउलहं वियारउ । समण सेयंसु पउत्तर । तणयालोयणवियसियछायहि । गयउ पुलोमै पणुणियभवणहु । वडिउ पुरि तइलोक्कहु राणउ । दिट्ठउ 'तं णेय रहति ॥ गणहर तणुपरिमाणु कहति ||१९|| जं १० घल्लियाई वरिसह खेळंतें । किउ रज्जाहिसेउ गुणवंतें । दोचालीस लक्ख गलियदहं । णा कीवणि तर्हि तइयहुँ । मयणहुयासहु बीउ हूयउ । विरहीय तें ताविउ मारिउ । Jain Education International भी कलस्वर में निर्घोष कर रहे हैं, उनके जो सुन्दर स्वर थे वे मानो कामदेव के तीर थे, जो मर्मका भेदन करनेवाले और मनुष्य और देवोंको विदारित करनेवाले थे। जब कामदेव के तीरोंने लोगोंको विदीर्ण कर दिया तो उन्होंने जिनको अपने हृदय में धारण कर लिया। जिनदेव बालक हैं, तब भी कामदेव आज ही शंकित है, इसी कारण रति अपने स्तनयुगलको नहीं ढकती । कामदेव अपने धनुषकी डोरीकी टंकार करता है, उससे अप्सराकुलमें विकार फैल जाता है । अनेक कल्याणोंसे नियुक्त प्रभुको इन्द्रने श्रेयांस कहा । नगर में लाकर उसने, उन्हें पुत्रको देखनेसे जिनकी कान्ति विकसित हो गयी है, ऐसी मां को सौंप दिया । पापरूपी बादलोंके लिए पवन उनको प्रणाम कर इन्द्र अपने विमानमें चला गया । समय बीतनेपर, उपमानसे रहित त्रिलोकके राजा वह नगर में बड़े हो गये । घत्ता - आदरणीय उनको स्वर्णछविको जिसने देखा वह रह नहीं सका । गणधर उनके शरीरका प्रमाण अस्सी धनुष प्रमाण बताते हैं ॥९॥ [ ४९.९.४ १० खेल-खेल में उनकी बाल्यावस्थाकी इक्कीस लाख वर्ष आयु बीत गयी । फिर देवेन्द्र उनकी वन्दना को और गुणवान् उसने उनका राज्याभिषेक किया । राज्य करते हुए, कामरससे आर्द्र उनके बयालीस लाख वर्ष बीत गये । जब उनका यह अवसर आया तो स्वामीने क्रीड़ावनमें लाल-लाल पल्लवोंका आम्रवृक्ष इस प्रकार देखा, मानो वह कामरूपी अग्निका बीज हो । वह मानो ज्वालामोंसे जल रहा था, इसी कारण उसने विरहीजनको सन्तप्त और आहत ५. AP वत्थुवमाणउ; २. A किल ते; P ते किल । ३. वि । ४. P पुलोमविणु । Tवत्थु अम्मोउ । ६. P तं तें अरहंतें । ७. P असीसरासणई । ८. P कहतें । १०. १. AP पणवंतें । २. AP णा की लंतें वणि तइयहु । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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